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(xiv) 'जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित' नामक इस ग्रन्थ की रचना नौ अध्यायों में की गई है।
प्रथम अध्याय में शोध की अनुकूलता बताई गई है और प्रतिपाद्य विषय का परिचय दिया गया है । इसमें आपने विषय की व्यापकता को स्वीकार करते हुए इस विषय को शोध के अनुकूल बताया है।
द्वितीय अध्याय में श्रीकृष्ण विषय पर प्राकृत जैन आगम साहित्य का परिचय दिया गया है ।इस अध्याय के प्रारम्भ में आगम शब्द की परिभाषा करते हुए आगम के पर्यायवाची शब्दों पर प्रकाश डाला है। इसके पश्चात् आगम साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इनमें उन स्थलों की ओर भी संकेत किया गया है, जहां श्री कृष्ण विषयक विवरण आया है।
तृतीय अध्याय में प्राकृत आगमेतर जैन श्रीकृष्ण साहित्य का बिन्दुवार परिचय दिया गया है।
चतुर्थ अध्याय में श्रीकृष्ण से सम्बन्धित संस्कृत जैन साहित्य का विवरण प्रस्तत किया गया है। इसमें काव्यों और महाकाव्यों का विस्तार से परिचय देने का प्रयास किया गया है।
पंचम अध्याय में अपभ्रश जैन श्रीकृष्ण साहित्य का विवरण है । षष्ठ अध्याय में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत तथा हिन्दी पर आधारित जैन श्रीकृष्ण कथा का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय काफी समृद्ध है और विषय विवेचन भी यथेष्ट रीत्यनुसार किया गया है।
सप्तम अध्याय में हिन्दी और जैन श्रीकृष्ण रास-पुराण साहित्य व अन्य साहित्य का परिचय दिया गया है। इस अध्याय के अन्तर्गत समाहित साहित्य की विस्तार से चर्चा भी की गई है । आठवें अध्याय में हिन्दी जैन श्रीकृष्ण मुक्तक साहित्य का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रकार 'जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित' नामक इस शोध प्रबन्ध के उपर्यत आठ अध्यायों में श्रीकृष्ण विषयक जैन परम्परा में रचित समस्त ज्ञात साहित्य का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। यह मुनिश्री का श्लाघनीय कार्य है। श्रीकृष्ण पर शोध करने वाले अध्येताओं के लिए यह ग्रन्थ अत्यधिक सहायता प्रदान करने वाला सिद्ध होगा, ऐसा मेरा विश्वास है । इसी प्रकार के अन्य परम्पराओं में रचित साहित्य पर भी यदि कार्य किया जाता है तो वह उपयोगी होगा और समस्त भारतीय परम्पराओं में श्रीकृष्ण पर उपलब्ध सामग्री एक स्थान पर एकत्र हो सकेगी। श्रीकृष्ण के विषय में विदेशी विद्वानों ने भी जो कुछ लिखा है, यदि उसे भी इस प्रकार के साहित्य के साथ जोड़ लिया जाये तो वह भी उपयोगी होगा।
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