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________________ (xiii) कथा भी श्रीकृष्ण के आसपास घूमती है। श्रीकृष्ण के अभाव में महाभारत का विवरण शून्य-सा प्रतीत होता है। इस प्रकार वे महाभारत की कथा के की-मेन (Key Men) हैं। इस कथा के सब सूत्र उनके हाथ में रहते हैं । लेकिन इतना होते हुए भी वे इस युद्ध को टाल नहीं सके । शायद वे भी इस बात को जानते थे। __ श्रीकृष्ण के जीवन के अनेक रोचक प्रसंग भी हैं। उनका चंचल बालपन विख्यात है। यौवन-कालीन प्रसंग भी महत्त्वपूर्ण है। उन सबसे मिलकर उनका समस्त व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक बन गया है। ___ द्वारिका नगरी का और श्रीकृष्ण का गहरा सम्बन्ध है । आज भी समुद्र में द्वारिका की खोज की जा रही है। उसके कुछ अवशेष मिलने के भी समाचार हैं । द्वारिका की खोज करने वाले विद्वानों को चाहिए कि इसकी खोज जैन साहित्य के सन्दर्भ में भी करने का प्रयास करें। कारण कि जैन साहित्य में भी द्वारिका का विस्तार से वर्णन उपलब्ध होता है। श्रीकृष्ण के पूर्व जो द्वारिका थी, वह समुद्र में डूबी हुई थी, उसी स्थान पर श्रीकृष्ण के लिए द्वारिका का निर्माण किया गया था। अस्तु, इस दिशा में कुछ रचनात्मक कार्य करने की अपेक्षा है, जिससे वास्तविकता का पता चल सके। श्रीकृष्ण पर बहुत कुछ लिखा गया है । काल-क्रमानुसार प्रचलित भाषाओं में विद्वानों ने श्रीकृष्ण के चरित्र पर अपनी लेखनी चलाई है। श्रीकृष्ण पर स्वतन्त्ररूप से तो लिखा ही गया, साथ ही कौरव-पांडवों पर जो सामग्री उपलब्ध होती है, उसमें भी श्रीकृष्ण पर लिखा गया है। कौरव-पांडव गाथा में श्रीकृष्ण की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण विषयक विवरण लोक-साहित्य में भी मिलता है, किन्तु समग्र लोक-साहित्य को संकलित कर पाना बड़ा कठिन कार्य है। आज भी अनेक ऐसे लोक-गीत लोक-कथाए हैं जो संकलन से बाहर हैं। श्रीकृष्ण विषयक लोकसाहित्य का संकलन और अध्ययन आवश्यक प्रतीत होता है । सम्बन्धित विद्वानों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व जितना आकर्षक था, उतना ही व्यापक उनका प्रभाव भी था । लगभग सभी धर्मों के विद्वानों ने उन पर अपनी कलम चलाई है। जैन धर्म में भी श्रीकृष्ण को महत्व दिया गया है, किंतु जिस रूप में हिंदू धर्म में उनका स्थान है, उस रूप में नहीं । जैन धर्म के विद्वानों ने श्रीकृष्ण विषयक साहित्य की भरपूर रचना की, जो आज हमारी अमूल्य धरोहर है। इस प्रकार के समग्र साहित्य को एक स्थान पर संकलित करना बड़ा कठिन कार्य है। यह कार्य सम्पन्न किया है, साहित्य वाचस्पति घमणसंघीय उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. शास्त्री के सुयोग्य शिष्यरत्न श्री राजेन्द्र मुनि जी ने। श्री राजेन्द्र मुनि जी ने कठोर परिश्रम करके 'जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित' नामक इस ग्रन्थ की रचना की है, जो उनकी अध्ययनशीलता का प्रतीक है। प्रस्तुत ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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