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(xv) प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का अन्तिम नौवां अध्याय है, तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार । प्रारम्भ के आठ अध्यायों में तो मुनिश्री ने श्रीकृष्ण विषयक जैन परम्परा के उपलब्ध साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया है, किन्तु इस अन्तिम अध्याय में आपने अपने अध्ययन का निचोड़ प्रस्तुत किया है जो इस शोध प्रबन्ध का महत्वपूर्ण भाग है। इस अध्याय का एक महत्त्वपूर्ण भाग वैदिक परम्परा और जैन परम्परा में श्रीकृष्ण कथा का तुलनात्मक विवेवन भी है। तुलनात्मक अध्ययन से अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं का समाधान तो होता ही है, अन्तर का भी ज्ञान हो जाता है, साथ ही मान्यता भेद भी स्पष्ट हो जाता है।
इस पुस्तक के पूर्व मुनिश्री की और भी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें उनकी विद्वत्ता स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है। उसी कड़ी में यह शोध प्रबन्ध मुनिश्री को एक गम्भीर अध्येता के रूप में प्रस्तुत करता है । मैं कामना करती हूं कि मुनिश्री की लेखनी निरन्तर प्रवहमान रहे और वे इसी प्रकार उच्च कोटि के ग्रन्थरत्न मां भारती के भण्डार की अभिवृद्धि के लिए प्रस्तुत करते रहें।
उज्ज्वल भविष्य की कामनाओं के साथ ।
जैन साध्वी डॉ० दिव्यप्रभा
एम० ए०, पी-एच० डी०
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