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प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
१३५.
वैदिक परंपरानुसार देवकी - वसुदेव मथुरा से विदा होकर घर जा रहे थे, स्वयं कंस उनका रथ वाहक था । देवक ने ४०० हाथी, १५ हजार घोडे, १८ सौ रथ व २०० दासियां दहेज में दी थीं 120 मार्ग में कंस को आकाशवाणी सुनायी दी कि जिसे तू रथ में बिठाकर ले जा रहा है उसी देवकी का आठवां बालक तुझे मारेगा। 22 और वह तत्काल देवकी-वध करने को उद्धत हो उठा। उसने देवकी के केश पकड़ लिये । इस पर वसुदेव ने कंस को समझाया कि देवकी का वध उचित नहीं है । इससे तो कोई भय तुम्हें है ही नहीं । इस के पुत्र से ही भय है, तो मैं इसके सभी तुम्हें सौंप दूंगा | 24 इस प्रकार कंस को आश्वस्त कर आसन्न अनर्थ को वसुदेव ने घटित न होने दिया 125
पुत्र
वासुदेव श्रीकृष्ण जन्म
कंस ने अपनी मृत्यु के भय से देवकी - वसुदेव को कारागृह में डाल रखा था । जहाँ देवकी ने ६ पुत्रों को जन्म दिया और वे सभी वचनानुसार कंस को दे दिये गये । कंस ऐसा मान रहा था कि ये देवकी के पुत्र हैं, अन्यजन भी ऐसा ही मान रहे थे, किंतु यथार्थ इससे भिन्न था
भद्दिलपुर में नाग सेठ की पत्नी सुलसा को मृत शिशु उत्पन्न हुआ करते थे 126 उसने हरिणगमेषी देव की उपासना की । वह प्रसन्न हो गया । संयोगवशात् देवकी और सुलसा को एक ही समय प्रसव होता था और देव सुलसा के मृत पुत्र को देवकी के पास और देवकी के जीवित पुत्र को सुलसा के पास रख देता था । प्रसन्नमना सुलसा इसे देव का आशीर्वाद मानती थी । शिशुओं का विनिमय ऐसी छद्म रीति से होता था कि देवकी, सुलसा आदि किसी को भी इसका बोध न हो पाता ।
इस प्रकार देवकी के ६ पुत्र सुलसा के घर में पोषित होने लगे । उधर तथाकथित देवकी पुत्रों (सुलसा के मृत पुत्रों) का कंस अंतिम संस्कार करा देता था । देवकी के अपने पुत्रों के नाम थे - १ अनीकयश, २
२०. श्रीमद्भागवत : १०।१।३१-३२ २२ . वही १०।११।३५
२४. वही १०।११५४
२६. त्रिषष्टि : ८५८१
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२१. श्रीमद्भागवत : १०।१ । ३४ २३. वही १०।१।३६
२५. १०१११५५
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