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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
भवितव्य का संकेत किया और कहा हे जीवयशा जिस (देवकी) के निमित्त यह समारोह मनाया जा रहा है, उसी का सातवां गर्भ तेरे पति और पिता का वध करेगा । 15 "उत्तर पुराण" के अनुसार यह प्रसंग अन्यथा रूप में भी ग्रहण किया जाता है । 16
गंभीर मुनि-वाणी से जीवयशा का नशा उतर गया और उसने मुनि का पीछा छोड़ दिया । मुनिवाणी सदा सत्य होती है - इस मान्यतावश जीवयशा भावी अनिष्ट से आतंकित एवं विचलित हो गयी और उसने कंस को तत्काल इससे अवगत कराया । आत्मरक्षार्थ सतर्क कंस अपने प्रति वसुदेव की प्रसन्नता एवं विश्वस्तता का लाभ उठाना चाहा । उसने नाटate विनम्रता के साथ वसुदेव से निवेदन किया कि आपके मुझ पर बड़े उपकार हैं । अब कृपापूर्वक एक वचन और दीजिये कि आप देवकी के सात गर्भ जन्मते ही मुझे दे दें । 17 " उत्तरपुराण" में यह कथानक कुछ भिन्नता के साथ आया है । 18 मुनि की भविष्यवाणी से अनभिज्ञ और देवकी के साथ अपने परिणय प्रसंग के कारण कंस से प्रसन्न वसुदेव ने यह वचन दे दिया । 19 वैदिक परंपरा में यह प्रसंग अन्यथा रूप में मान्य है । तथापि दोनों ही परंपराओं में यह साम्य अवश्य है कि कंस ने इसके पश्चात् वसुदेव-देवकी को स्वतंत्र नहीं रखा ।
१५. त्रिषष्टि: ६।५।७४
१६. उत्तरपुराणानुसार अतिमुक्त की तीन भविष्यवाणियां थी । १ देवकी का पुत्र अवश्य ही तेरे पुत्र को मारेगा । २. तेरे पति को ही नहीं तेरे पिता को भी मारेगा । ३. देवकी का पुत्र समुद्रपर्यन्त पृथ्वी का पालन करेगा ।
उत्तरपुराण श्लोक ३७३ - ३७५
१७. त्रिषष्टि : ८।५।७४
त्रिषष्टि: ८।५।७७-८३
१८. उत्तरपुराण में उल्लेख है कि किसी अन्य दिन अतिमुक्त मुनि आहारार्थ देवकी के घर गये और देवकी ने प्रश्न किया कि हम दोनों दीक्षा ग्रहण करेंगे या नहीं ? इस पर मुनि ने कहा कि तुम लोग इस प्रकार बहाने से क्यों पूछते हो । तुम्हारे ७ पुत्र होंगे । अंततः सयम ग्रहण करके मुक्त हो जायेंगे । सांतवां पुत्र अर्द्धचक्री होगा और पृथ्वी का चिरकाल तक पालन करेगा ।
१६. त्रिषष्टि: ६६५८४-८९
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