SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य सोरियपुर-नरेश समुद्रविजय को आदेश दिया कि वह विद्रोही सिंह राजा को पकड़कर उसके समक्ष उपस्थित करे। उसने यह घोषणा भी की कि सिंह राजा को पकड़ने वाले के साथ वह अपनी पुत्री जीवयशा का विवाह भी कर देगा और उसे पुरस्कार में राज्य भी दिया जायगा। कृमार वसुदेव की इच्छा स्वीकारते हुए राजा समुद्रविजय ने उन्हें इस अभियान पर जाने की अनुमति तो प्रदान कर ही दी, किंतु साथ ही उन्हें चपके से इस रहस्य से अवगत भी करा दिया कि जीवयशा कनिष्ठ लक्षणों की है। वह अपने पिता तथा पुत्र-दोनों के लिये अमंगलकारिणी बनेगी, दोनों कूलों के लिए कलंक का कारण बनेगी। भ्राता ने निर्देश दिया कि जीवयशा से वसुदेव स्वयं विवाह न कर कंस के साथ उसका विवाह करवा कंस के वंश की खोज की जाने लगी और मुद्रिकाओं के द्वारा यह स्पष्ट हो गया कि वह मथुरा का राजकुमार है । परिणामतः वह जरासंध की घोषणा का लाभ उठाने के योग्य भी समझा जाने लगा। अपने अभियान में सफल होकर वसुदेव जब जरासंध के समक्ष पहुंचे तो जरासंध ने पूछा कि सिंह राजा को बंदी बनाने वाला वीर कौन है ?? अपनी योजनानुसार वसुदेव ने कंस का परिचय प्रस्तुत कर दिया। जीवयशा के साथ कंस का विवाह संपन्न हो गया। वसुदेव सुरक्षित हो गये और कंस उनका कृतज्ञ हो गया। अपने जन्म और उसके पश्चात् के समस्त वृत्तांत से अवगत होकर कंस अपने पिता उग्रसेन के प्रति रोष से भर गया और जरासंध की सेना सहित वह मथरा आया। उसने पिता उग्रसेन को बंदी बना लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा ।' पिता की यह दुर्गति देख कर कंस के अनुज अतिमुक्त के मन में विरक्ति उत्पन्न हो गयी और उसने दीक्षा ग्रहण कर ली।10 वसुदेव-देवको परिणय कंस अपनी गौरवपूर्ण स्थिति के लिए वसुदेव का आभारी था। ५. त्रिषष्टि : ८।२।८२-८४ ६. विशिष्ट निमित्तज्ञ क्रोष्टकी से यह ज्ञात हुआ था। ७. त्रिषष्टि : ८।४।६५-६६ ८. त्रिषष्टि : ८।२।८५-६४ ९. त्रिषष्टि : ८।२।६५-६६ १०.त्रिषष्टि : ८।२।१०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy