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________________ प्राकृत, अपभश, संस्कृत तथा अन्य (हिंदी) पर आधारित जैन श्रीकृष्ण कथा का विवेचन अब तक प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत में जैन श्रीकृष्ण साहित्य का अनुशीलन किया गया । यहाँ पर इन सब पर आधारित जैन साहित्य की श्रीकृष्ण कथा की संक्षिप्त विवेचन करने का उद्योग किया गया है। वासुदेव श्रीकृष्ण जैन एवं वैदिक दोनों ही परंपराओं में श्रीकृष्ण को वासूदेव कहा गया है, किंतु दोनों परंपराओं में इस शब्द के प्रयोग में उल्लेखनीय अंतर है । वैदिक परंपरा में तो वसुदेव के पुत्र होने के नाते “वासुदेव" श्रीकृष्ण का नाम अमर हो गया है, किंतु जैन परंपरा में वासुदेव किसी व्यक्ति विशेष का नाम न होकर विशिष्ट गुणयुक्त महापुरुषों की एक श्रेणी में वासुदेव भी एक हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में ऐसे ह वासुदेव होते रहे हैं। श्रीकृष्ण वर्तमान अवसर्पिणी काल के ऐसे ६ वासुदेवों में से एक हैं। ऐसे प्रत्येक आरक में इस प्रकार ६३ महापुरुषों का आविर्भाव होता है। वे "शलाकापुरुष" कहलाते हैं। इनमें से २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ६ बलदेव, ६ वासुदेव और ६ प्रतिवासुदेव होते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल में आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव एवं अंतिम-२४ वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी हुए हैं । २२ वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि के समकालीन वासुदेव ही श्रीकृष्ण थे। ये अपनी वासुदेव परंपरा के ६ वें, अर्थात् अंतिम वासुदेव थे । कंस परिचय वसुदेव ने अनेक विवाह किये थे। देवकी के साथ उनका अंतिम विवाह था । वसुदेव-देवकी ही श्रीकृष्ण के जनक-जननी थे। वसुदेव-देवकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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