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अपभ्रंश जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
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यह विवेचन इसलिए दिया गया है कि अपभ्रंश कृष्णकाव्य का अध्ययन प्रस्तुत करने के पहले जैन परंपरा से मान्य कृष्ण कथा की रूपरेखा जानी व समझी जा सके । इस रूपरेखा के दो आधार हैंप्रथम : यह कथा दिगम्बराचार्य जिनसेन के (सन् ७८४) संस्कृत हरिवंश
पुराण के ३३, ३४, ३५, ३६, ४०, ४१ सर्गों पर आधारित है। द्वितीय : श्वेतांबराचार्य हेमचंद्र के सन् १९५६ के करीब रचित त्रिषष्टि
शलाका पुरुष चरित्र का ८ वां पर्व है जिसमें सविस्तार श्रीकृष्ण चरित्र है । जैन कृष्ण चरित्र के स्पष्ट रूप से दो भाग किये जा सकते हैं। प्रथम में कृष्ण यादवों के द्वारावती प्रवेश तक का अंश आता है और शेष कृष्ण चरित्र का अंश दूसरे भाग में समाविष्ट हो जाता है। कृष्ण जितने पूर्व भाग में केंद्रवर्ती हैं उतने उत्तर भाग में नहीं हैं।
इस अध्याय में मैंने अपने अध्ययन में कुछ कवियों की कृतियों से उदाहरण देकर अपने कथन को पुष्ट किया है और अन्य कवियों की कृतियों का और उनका निरूपण इसलिए कर दिया है। क्योंकि ये कृतियां अप्रकाशित और हस्तलिखित रूप में हैं। इनका मिलना इसलिए भी कठिन है; क्योंकि ये भिन्न-भिन्न स्थानीय जैन संग्रहालयों में हैं।
इसके बाद के अध्यायों में अब हिंदी जैन कृष्ण साहित्य का विवेचन -अनुशीलन प्रस्तुत किया जायगा। इन पाँच अध्यायों के बाद अब तक किये गये अध्ययन के आधार पर जैन कृष्ण कथा को षष्ठ अध्याय में विवेचित किया जाएगा। इसके संदर्भ भी उसके साथ में दे दिये हैं।
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