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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य अपभ्रंश साहित्य में कृष्ण काव्य की झलक और निरूपण विशेष रूप से बाल-चरित्र को लेकर ही हुआ है। इसकी बलिष्ठ परंपरा जैन कृष्णकाव्य कृतिकारों के द्वारा निर्मित हुयी है। वर्णनशैली और भाव-लेखन की गुणवत्ता का स्तर ऊंचा है। जैन कृष्ण काव्य के कवियों में पुष्पदंत और स्वयंभू निःसंदेह उस गौरवयुक्त स्थान के अधिकारी हैं जिस स्थान के अधिकारी व्रजभाषा के महान कृष्णकवि सूरदास हैं । सूरदास को यह स्थान दिलाने में जैन अपभ्रंश कृष्ण साहित्य का निर्माण करने वाले कवियों को इसका श्रेय देना होगा। संस्कृत-प्राकृत का कृष्णकाव्य भारतीय साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है तो भाषा साहित्य के कृष्णकाव्य के बीच की एक श्रृंखला के रूप में अपभ्रंश का जैन कृष्ण काव्य महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। इसका अपना निजी वैशिष्टय है और महत्ता भी।
जैन कृष्ण कथा नियम से ही एकाधिक कथाओं के साथ संलग्न हुआ करती थी। अल्पाधिक मात्रा में, ३, ४ विभिन्न कथाओं का गंफन हुआ करता था। एक कथा कृष्ण के पिता वसुदेव के परिभ्रमण की है तो दूसरी २२ वें तीर्थकर अरिष्टनेमि के चरित्र की और तीसरी कथा पाण्डवों के चरित्र की। इनके अतिरिक्त मुख्य मुख्य पात्रों के भवांतरों की कथाएं भी दी गयी हैं। वसुदेव हिण्डी के नाम से जैन परंपरा की कथा में वसुदेव ने एक सौ वर्ष तक विविध देशों का परिभ्रमण किया और अनेकानेक मानव कन्याओं और विद्याधर कन्याओं से भी विवाह किया। कृष्णकथा के प्रारंभ में वसुदेव का वंश वर्णन और उसका चित्रण आया है। यहीं पर वसुदेव के परिभ्रमण की अनेक कथाओं का वर्णन भी आया है।
अरिष्टनेमि कृष्ण (वासुदेव) के चचेरे भाई थे। फलतः अनेक बार कृष्ण चरित्र नेमिचरित्र के साथ आया है । इसके अलावा पाण्डव और कौरवों का कृष्ण के साथ निकट संबंध होने से कृष्ण के उत्तर चरित्र में महाभारत की कथा भी जुड़ जाती है। इस कृति का नाम जैन महाभारत भी कहीं कहीं प्रचलित है। तात्पर्य यह है कि कृष्ण चरित्र विषयक जिस अंश को प्रधानता दी गयी है उसके अनुसार उसके नाम को अरिष्टनेमिचरित्र, नेमिपुराण, हरिवंश पुराण, पांडव पुराण और जैन महाभारत की संज्ञा भी दी गई है। वैसे यह कोई नियम नहीं है, न कोई एकवाक्यता; क्योंकि कहींकही विशिष्ट अंश को समान प्राधान्य देनेवाली कृतियों के नाम भी भिन्न-भिन्न रूप से मिलते हैं। जैन पुराण कथाओं का स्वरूप एक ओर अपभ्रंश में मिलता है, तो दूसरी और संस्कृत प्राकृत में मिलता है। यहां
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