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अपभ्रंश जैन श्रीकृष्ण - साहित्य
कासु वि तुंगु मउड सुविसुट्ठउ, ओढणु वाडुकहमि भंजिट्ठउ ।
सव्वहं सीखें रत्तेबद्धा, रीरीं घडियकडाकडिमुद्धा ॥
अर्थात् किसी के कंधे पर नेत्ती (नेत्रवस्त्र की साडी ) थी तो किसी की "लोई " ( कमली ) लाख जैसी रक्तवर्ण थी, किसी के सिर पर धारदार लिजे ( नीज) थी तो किसी की चुन्नी फूलवाली थी । किसी का मोर ऊंचा और दर्शनीय था तो किसी की ओढनी और बोड मजीठी रंग का था । सभी के सिर पर लाल (वस्त्रखंड ) बंधा हुआ था और वे पीतल के कड़े, Safari और मुद्रिका पहने हुयी थीं ।
१२५.
(५) पज्जुण्ण चरिउ ( प्रद्युम्न चरित्र )
यह एक खंडकाव्य है जिसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार का चरित वर्णित है । विक्रम की १३वीं शताब्दी में इसकी रचना का अनुमान लगाया जाता है । पज्जुण्णचरिउ के रचनाकार का नाम "सिंह" मिलता है, किंतु कुछ विद्वानों के मतानुसार यह नाम “सिद्ध" है । इस खंडकाव्य में १५ संधियां हैं | आरम्भ की आठ संधियों में कवि का नाम सिद्ध और शेष में सिंह व्यवहृत हुआ है । यह संभावना भी व्यक्त की जाती है कि कदाचित् सिंह नामक कवि ने बाद में कभी इस रचना का उद्धार किया हो । जो कुछ भी रहा हो, कवि नाम के विवाद के परे पज्जुण्णचरिउ एक सुंदर खंडकाव्य ठहरता है इतनी बात सत्य है ।
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(६) मिणायचरिउ : लखम देव
स्वतः
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यह लक्ष्मणदेव कृत नेमिनाथचरित भी एक खंडकाव्य है । २२ वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का जीवन चरित्र इस काव्य का मुख्य प्रतिपाद्य विषय रहा है । इसमें प्रासंगिक रूप में श्रीकृष्ण कथा के कतिपय प्रमुख अंश सम्मिलित हो गए हैं । अंतः साक्ष्य के अभाव में ग्रंथ के किसी निश्चित रचनाकाल का पता नहीं चलता । इस खंडकाव्य की एक ऐसी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है जिसका लेखन वि० सं० १५१० में हुआ है । इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह रचना १५ वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की हो सकती है । इस प्रबंध रचना ( खंडकाव्य) में ४ संधियाँ और ८३ कडवक हैं ।
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