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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य (३) नेमिनाहचरिउ : हरिभद्र
हरिभद्रसूरि द्वारा रचित "नेमिनाहचरिउ” रड्डा छंद में रचित तीन हजार छंदों का महाकाव्य है । इसके २२-२७ वें छंद से करीब-करीब १०० छंदों से आगे तक कृष्ण जन्म से कंस-वध तक की कथा आयी है। इसका रचना काल सन् १९६० है । हरिभद्र पुष्पदंत की परंपरा में आने वाला कवि है, विशेषतः कृष्ण की हत्या के लिए कंस द्वारा भेजे गए वृषभ, खर, तुरग, और मेष के चिन्ह दढ़ रेखाओं से रेखांकित हैं। मल्लयुद्ध के प्रसंग में कवि की कवित्वशक्ति का परिचय मिल जाता है। यह कृति अप्रकाशित है। इसलिए इसमें से हमने उदाहरण नहीं लिए हैं। (४) हरिवंश पुराण : कवि धवल
जैन कृष्ण काव्य की दृष्टि से धवलकृत हरिवंशपुराण का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन परंपरानुसार ही श्रीकृष्ण-कथा का वर्णन किया गया है और आचार्य जिनसेनकृत हरिवंशपुराण के अनुसरण में कथानक को रूपायित किया गया है। १२२ संधियों का यह एक पर्याप्त विशाल ग्रंथ है। इस रचना का काल ११ वीं शताब्दी के बाद का माना जाता है; क्यों कि अभी तक इसका रचना समय निश्चित नहीं हो पाया है। इस ग्रंथ की भाषा में हम पुरानी हिंदी के संकेत पाते हैं । धवलकृत हरिवंश की ५३, ५४, ५५ संधियों में कृष्ण जन्म से कंस वध तक की कथा आयी है। कथा के निरूपण और वर्णनों में रूढि का अनुसरण होते हुए भी कवि ने मौलिकता प्रकट की है। यहां पर कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं, जैसे
५३-१७ में नैमित्तिक बालकृष्ण के गुण-लक्षण वर्णित हैं10
कासु विखवरी उप्परी नेत्ती, कासु वि लोई लक्खारची। कासु वि सिसे लिंज थराली कासु विचुण्णी फुल्लडियाली।
८. भारतीय भाषाओं में कृष्ण काव्य खंड १, संपादक डा० भगीरथ मिश्र, पृ० १६६ ६. धवल के हरिवंश की हस्तलिखित प्रति जयपुर के दिगंबर अतिशयक्षत्र श्री.
महावीर जी शोध संस्थान के संग्रह में विद्यमान है। प्रति के पाठ में कई
अशुद्धियां हैं। १०. शोधपत्रिका, वर्ष २६, अंक २. १९७८, सं० डा० देवीलाल पालीवाल व डा.
देव कोठारी, साहित्य संस्थान, उदयपुर, पृ० ३३
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