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अपभ्रंश जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
१२३ पत्ता : गोवद्धणयरेण गोयोभिणिभारु व जोइउ । गिरि गोवद्धषउ गोवद्धणेण उच्चाइउ ॥७
(महापुराण, ८६-१५-१० से १२, १६, १ से ३२) "कुछ समय के पश्चात् आषाढ मास में बरसात आ कर शोभा दे रही थी। लोग हरित और पीत वर्ण का सुरधन देखने लगे, मानो वह नभलक्ष्मी के पयोधर पर रखा हुआ उत्तरीय हो । पथिकों का हृदय-विदारक इस इंद्रचाप कों वे बार-बार देखने लगे। मानो वह घनहस्ती के प्रवेश के अवसर पर गगनगह पर लगाया गया मंगलतोरण हो। जल झलझल नाद से गिर रहा है। सरिता बहती हुई खोह को भर देती है। तडतडा कर तडित पडती है जिससे पहाड़ फूटता है, मयूर नाच रहा है, तरुओं को घुमाता पवन चल रहा है। गोकूल के सभी जलस्थल भयग्रस्त होकर थरथराते हुए चीखने लगे हैं। उनको मरणभय से ग्रस्त देखकर सरलाक्षा जयलक्ष्मी के लिये सतष्ण धीरवीर कृष्ण ने सुरप्रशस्त भजयूगल से विशाल गोवर्धन पर्वत उठाया और लोगों को धृति बंधाई । गोवर्धन को उखाड़ देने से अंधकार से भरा हुआ पाताल विवर प्रकट हुआ। जिसमें फणींद्रों के समूह फुकारते थे, विष उगलते थे, सलसलाते और घमराते थे । त्रस्त होकर हिरन के शिशु भागने लगे। कातर वनचर गिरकर चिल्लाने लगे। हिंसक चाण्डालों ने चंड शर फेंक दिये। परवशतावश लोग भय से भयभीत हो उठे। गोओं का वर्धन करने वाले गोवर्धन ने राज्यलक्ष्मी का भार जैसा गिरि गोवर्धन उठाया।"
__महाकवि पुष्पदंत को अपभ्रंश का सर्वश्रेष्ठ कवि होने का गौरव प्राप्त है। उनकी रचनाओं में जो ओज, प्रवाह, रस और सौन्दर्य है, वह अत्यन्त दुर्लभ है। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है और उनका शब्द भण्डार विशाल है। शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनों से उनकी कविता समृद्ध है।
पुष्पदंत की अन्य प्रमुख रचनाएं हैंणायकुमार चरिउ-नागकुमारचरित्र जसहर चरिउ-यशोधर चरित्र कोष-यह देशी भाषा का कोषग्रंथ है।
६. भारतीय भाषाओं में कृष्णकाव्य, प्र० खंड-डा० भगीरथ मिश्र, पृ० १६८
___ महापुराण १६-१ से ३२ । ७. जैन साहित्य और इतिहास : नाथूराम प्रेमी, पृ० १२५
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