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________________ १२२ निम्नप्रदेश प्रकट किया ? मानो धरा रूपी नारी ने काजर लगाया । क्या हम समझें कि अपने प्रियतम पर अनुरक्त हो कर उसने अपना घत्ता : वर्षावर्णन - गोवर्धनोद्धरण मधुमंथन को देखकर नदी यमुना भी मदनव्याकुल हो उठी । कालें जते छज्जइ पत्तउ हरियउ पीयलउ उवरि पओहरह दुवई : दिट्ठउ इंदचाउ पुणु धणवारणपवेसि णं जलु गलइ तडयउइ मरु चलइ णिरु रसिउ जा ताव सरलच्छि सुरथुइण महिहरउ महिविवरु परिथुलइ तठ्ठाइ पडियाइ हिंसाल तावसइ झलझलइ । तडि पडइ । तरु धुलइ । भयतसिंउ । Jain Education International थिरभाव । जयलच्छि । जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य भुयजुइ । दिहियरउ । फणिणियरु | चलवलइ । णट्ठाइ | रडियाइ । चंडाल | परवसइ । आसाढागमि वासारत्तउ । दीसइ जणेण तं सुरधणु । णं णलच्छिहि उप्परियणु ॥ पुणु अइ पंथिपहिययभयहो । मंगलतोरणु णहणिकेयहो || दरि भरइ गिरि फुडइ जलु थलु वि थरहरइ धीरेण तण्हेण वित्थरिउ तमजडिउं फुप्फुवइ तरुणाइ कायरइ घित्ताइ चंडाइ दरियाई सरिसरइ । सिहि ण्डइ | गोउलु वि । किर मरइ | वीरेण । कण्हेण । For Private & Personal Use Only उद्धरिउ 1 पायडिउं । ५. भारतीय भाषाओं में कृष्णकाव्य, प्र० खंड - डा० भगीरथ मिश्र, पृ० १६७, महापुराण ८६ - १५-१० से १६-१ से ३२. विसु मुयइ | हरिणाइ । वणयरइ । चत्ताइ । कंडाइ | जरियाइ । www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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