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________________ जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य प्राचीनतर पाठ सुरक्षित है। इसके अतिरिक्त "सिद्धहेम", ८-४-४२०, २ में जो दोहा उद्धृत है वह भी मेरी समझ में बहुत कर के गोविंद के ही उसी काव्य के ऐसे ही संदर्भ में रहे हुए किसी छंद का उत्तरांश है । “स्वयंभूछंद" में दिया गया गोविंदकृत वह दूसरा छंद इस प्रकार है। अंश हेमचंद्र वाले पाठ से लिया गया है। एक्कमेक्कउ जइ वि जोएदि हरि सुठू वि आअरेण तो विद्रोहि हि कहिं वि राही। को सक्कइ संवरे वि दड्ढ णयण गोहे पलुटा ।। (स्व० च्छ० ४-१०-२) एक-एक गोपी की ओर हरि यद्यपि पूरे आदर से देख हे हैं तथापि उनकी दृष्टि वहीं जाती है जहां राधा होती है : स्नेह से झुके हुए नयनों का संवरण भला कौन कर सकता है ? इसी भाव से संलग्न “सिद्धहेम” में उद्धृत दोहा इस प्रकार है हरि नच्चाविउ प्रगणइ विम्हइ पाडिउ लोउ । एवहिं राह-पओहरहं जं भावइ तं होउ ।। "हरि को अपने घर के प्रांगण में नचा कर राधा ने लोगों को विस्मय में डाल दिया। अब तो राधा के पयोधरों का जो होना हो सो हो।" ___"स्वयंभू छंद" में उद्धृत बहुरूपा मात्रा के उदाहरण में कृष्ण के वियोग में तडपती हुई गोपी का वर्णन है । पद्य इस प्रकार है देह पाली थणहं पन्भारे तोडेपिरणु पालिणिदलु हरिविओअसंतावें तत्ती। फलु अण्णुहि पावियउ करउदइअ जं किपि रुच्चइ ॥ कृष्ण वियोग के संताप से तप्त गोपी उन्नत स्तन प्रदेश पर नलिनीदल तोड़ कर रखती है । उस मुग्धा ने अपनी करनी का फल पाया। अब देव चाहें सो करें। हेमचंद्र के "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र" 8-५ में किया गया वर्णन इससे तुलनीय है-गोपियों के गीत के साथ बालकृष्ण नृत्य करते थे और बलराम ताल बजाते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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