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अपभ्रंश जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
११५ की है। इसे मानने का पर्याप्त आधार है। महाभारत विषयक कष्णकाव्य में कृष्ण चरित्र के कुछ अंश ।
चतुर्मख के अतिरिक्त स्वयंभू का एक और ख्यातनाम पूर्ववर्ती था, जिसका नाम गोविंद था । गोविंद के ६ छंद जो दिए गए हैं वे कृष्ण के बालचरित विषयक किसी काव्य के अंश हैं। जहां से वे लिए गए हैं, गोविंद के उद्धृत छंदों में इसके हरिवंश विषयक या नेमिनाथ विषयक काव्य में से लिए गये जान पड़ते हैं। संभवतः पूरे काव्य की रचना द्विभंगी छंद में की गयी होगी। हरिभद्र ने इसके बाद रड्डा छंद में ही "नेमिनाथ चरित" की रचना की थी।
स्वयंभ छंद में गोविंद से लिया गया मत्तविलासिनी नामक मात्रा छंद का उदाहरण जैन परंपरा के कृष्ण बालचरित्र का एक सुप्रसिद्ध प्रसंग है।
कालिय-नाग के निवासस्थान बने हुए कालिंदी में से कमल निकाल कर भेंट करने का आदेश नंद को कंस ने दिया था, इस संदर्भ का पद्य इस प्रकार है
एहु विसमउ सुद्ध आएसु पाणंतिउ माणुसहो विट्ठो विसु सप्पु कालियउ । कंसु वि भारेह धुउ कहिं गम्मउ काइं किंजउ ॥
(स्व-च्छ-४-१०-१) यह आदेश अत्यंत कठोर था । वह यह कि मानव के लिए प्राण संहारक दष्टि-विष वाला कालिय नाग अपने विषैले फूत्कार और विषेली दष्टि से श्रीकृष्ण का हनन करे । और, दूसरा आदेश यह कि यदि सर्प उसे कुछ न कर पावे तो दूसरी ओर यह था (आदेश के अनादर से) कंस से अवश्य प्राप्तव्य मृत्युदण्ड-तो अब वह कहां जाएं और क्या करें ?
गोविंद का दूसरा पद्य जो मत्तकरिणी मात्रा छंद में रचा हुआ है, राधा की और कृष्ण का प्रेमातिरेक प्रकट करता है। हेमचंद्र के "सिद्धहेम" में भी यह उद्धृत हुआ है (देखो ८-४-४२२, ५) और वहीं कुछ अंश में
1. Caturmukha-One of the earliest Apābhramsia-epic posts, Journal of the Oriental Institute, Baroda.
-ग्रंथ ७, अंक ३, ले० डा० एच० सी० भायाणी, १ मार्च १६५८, पृ० २१४-२४
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