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संस्कृय-जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
(५) नेमिदूत यह अवश्य एक उल्लेखनीय सरस काव्यकृति है । चरित नायक नेमिनाथ और नायिका राजीमती हैं। यह विरह प्रधान करुण काव्य होने पर भी वीतराग रस की निर्मिती इसका प्रामुख्यता से उद्देश्य जान पड़ता है । जैन संस्कृत काव्यों में इसका अन्यतम स्थान है।
(६) त्रिशष्टिशलाका पुरुषों के चरित को लेकर कतिपय छोटी-बड़ी कृतियाँ भी जैन संस्कृत कवियों के काव्य-सृष्टि का विषय बनी हैं जो जैन तत्वज्ञान की पारंपरिकता को स्पष्ट करने में सहायक हो सकती हैं। इनमें पौराणिकता भी विद्यमान है । एक ही कृति के दो भाग दो पुराणों के नाम से सजित हैं। इसकी भी एक परंपरा चली है और कई पाण्डवपुराण भी लिखे गये हैं । काव्य की दृष्टि से कहीं सरस और कहीं मनोरम बन गये हैं।
(७) श्रीकृष्ण और पाण्डव, श्रीकृष्ण और नेमिनाथ इनका आपसी संबंध महाभारत और जैन पुराणों के अनुसार जोड़कर ये कृतियाँ जैन लेखकों ने रची हैं। इन सब का यथा-योग्य अध्ययन यथास्थान मैंने कर दिया है । पुराने संस्कृत काव्यों के कृतिकारों के साथ जैन श्रीकृष्ण संस्कृत कृनिकारों की यह स्पर्धा काव्य के क्षेत्र की एक श्रेष्ठ स्पर्धा मानी जाय ऐसी मेरी विनम्र प्रणति है।
अब तक की सारी सामग्री के आधार पर तथा अपभ्रंश की जैन कृष्ण कथा को लेकर छठे अध्याय में सारी कथा का अनुशीलन करूँगा। अगला अध्याय मेरे अध्ययन का अपभ्रंश जैन कृष्ण साहित्य होगा।
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