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१.१,०.
नेमिदूत (जैनकाव्य) विशेष महत्वपूर्ण है ।
निःसंदेह जैन संस्कृत साहित्य सभी दृष्टियों से महान है। उसका वैभव प्राचुर्य भी ध्यातव्य है । उसका सौंदर्य तथा सौष्ठव भी उल्लेखनीय है । संस्कृत साहित्य के इस व्यापक पट पर जैन कवियों द्वारा रचित संस्कृत कृष्ण काव्यों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । यह एक यथार्थ तथ्य है कि संस्कृत को जो प्रचुर गरिमा प्राप्त हुई है उसमें जैन संस्कृत कृष्ण साहित्य का योगदान भी अति महत्वपूर्ण रहा है। यहां यह स्मरणीय है कि जैनेतर कृष्ण काव्य में उधो को संदेश देकर गोपियों के पास कृष्ण ने भेजा था और गोपियों ने भी भृंग को लक्षित करते हुए कृष्ण और उधो पर फब्तियां कसी हैं, पर इस प्रकार का कोई प्रयत्न संस्कृत जैन कृष्ण काव्य में उपलब्ध नहीं हुआ है । उसका कारण जैन तत्वज्ञान और वीतरागी दृष्टि भी हो सकती है ।
जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य
मैंने इस अध्याय में संस्कृत के करीब-करीब जैन कृष्ण काव्यों की सोलह कृतियों का अनुशीलन किया है । जो तथ्य और निष्कर्ष हाथ आये हैं उनका अब मैं यहां पर विवेचन कर रहा हूँ ।
निष्कर्ष एवं तथ्य
( १ ) इस अध्याय में चरित महाकाव्य के अंतर्गत प्रद्युम्न चरित, नेमिनिर्वाण काव्यम् ये दो महाकाव्य चरित्र, महाकाव्य के रूप में मेरे अध्ययन में आए।
(२) नरनारायणानन्द महाकाव्य में अर्जुन और श्रीकृष्ण इन दो मित्रों की मैत्री, आनंद और उल्लास का वर्ण्य विषय होकर बड़ी सरस कृति प्रस्तुत की गई है । यही इन दोनों के चरित्र का आलेख आयाम भी बना है ।
( ३ ) सप्तसन्धान काव्य में सात महापुरुषों का चरित्र संक्षिप्त रूप से सात सर्गों में विवेचित किया है। इसके बाद एक द्विसंधान नाम का राघव और पाण्डवों की कथा को एक साथ प्रस्तुत करनेवाला काव्य मेरे अनुशीलन का विषय बना । पूरे चरित्रों को न लेकर श्रीराम और श्रीकृष्ण की प्रमुख जीवन घटनाओं को जैन दृष्टि से लेकर इनका विवेचन सामने आया है ।
(४) पुराणसारसंग्रह, हरिवंशपुराण ये छोटी कृतियाँ हैं, पर श्रीकृष्ण चरित्र और अरिष्टनेमी का संबंध दूसरी कृति में जैन दृष्टि से अधिक स्पष्ट हो गया है ।
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