SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य उल्लेखनीय रही है । कवि को पाण्डित्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति का भी संकेत नहीं मिलता है । अति विस्तृत कथानक होते हुए भी कहीं किसी प्रकार का शैथिल्य या विशृंखलता नहीं दिखायी देती है। प्रबंध कौशल में निःसन्देह मुनिभद्र माघ और भारवि से पीछे नहीं है । कला के क्षेत्र में अवश्य ही वे कुछ न्यून कहे जा सकते हैं। हां, जिनपालोपाध्याय रचित सनत्कुमार चरित्र चरित महाकाव्य परिपूर्ण रूप से अवश्य ही नैषध की कोटि का है । जैन संस्कृत साहित्य के अंतर्गत जैनकुमार संभव की भी रचना हुई है । इस कृति की रचना कालिदास विरचित कुमारसंभव की प्रतिस्पर्धा में ही हुई है, ऐसा प्रतीत होता है । प्रस्तुत रचना में शृंगार रस की योजना तो उतनी श्रेष्ठ नहीं मिलती जितनी कालिदास की है, किंतु कालिदास के कार्तिकेय जन्म वृत्तांत जैसा ही वर्णन प्रस्तुत रचना में भरत जन्म की कथा में है । माधुर्य, प्रासादिकता, लालित्य, अर्थसौष्ठव एवं अलंकार योजना में दोनों रचनाएँ बिंब प्रतिबिंब सी हैं । जैन कुमार-संभव भी सरस उपमाओं के लिए विख्यात ग्रंथ है । अश्लीलत्व की अनुपस्थिति में ये उपमायें अपेक्षाकृत अधिक उत्तम लगती हैं । कालिदास ने शिवविवाह का जैसा चित्ताकर्षक एवं मार्मिक चित्रण किया है वैसा ही वर्णन जैन कुमार संभव में ऋषभदेव विवाह का हुआ है। बुद्ध चरित और सौंदरानंद की समकक्षता जैन ग्रंथ चंद्रप्रभ चरित, पार्श्वनाथ चरित आदि काव्यों से की जाती है । संस्कृत काव्यों (उक्त ) की अपेक्षा इन जैन संस्कृत काव्यों में मनुष्य की हृदय परिवर्तनशीलता का अत्यधिक मार्मिक चित्रण हुआ है । सांसारिक अनुभवों की अभिव्यक्ति भी अधिक कुशलता के साथ हुई है । साहसिकता के चित्रण में प्रद्युम्न चरित सौंदरानंद से अधिक प्रवाहपूर्ण रचना है । पात्रों की सजीवता, पारिवारिक कलह, सपत्नी आदि के चित्रण हेतु यह रचना संस्कृत जैन कृष्ण विषयक चरित्र काव्य की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है । जैन संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक काव्यों की रचना भी श्रेष्ठता के साथ हुई है। उदाहरणार्थ नयचंद्रसूरिकृत हम्मीर महाकाव्य संस्कृत के विख्यात ऐतिहासिक काव्य विल्हण कृत विक्रमांकदेव चरित के समकक्ष है । हम्मीर महाकाव्य में वर्णित घटनाएँ इतिहास की दृष्टि से खरी उतरने वाली प्रामाणिक घटनाएँ हैं । इस महाकाव्य में कालिदास जैसा भाव, तथ्य, नैषध जैसा अर्थ - गौरव एवं भाषा - सौष्ठव में यह रचना राजरंगिणी के समकक्ष है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy