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संस्कृत - जैन श्रीकृष्ण - साहित्य
ये उपाधियाँ लगायी जाती थी ।
भ० श्रीभूषण का पाण्डव पुराण सं० १६५७ का है । इन्हीं का लिखा हुआ एक हरिवंश पुराण भी मिलता है जिसका रचनाकाल सं० १६७७ हैं 108
(१६) पाण्डव पुराण :अन्य रचनायें
“पाण्डव पुराण" इस नाम की कई रचनाएँ उपलब्ध हैं । इनके रचनाकार भी भिन्न-भिन्न हैं । इसकी सूची इस प्रकार है - पाण्डवचरित्र इसका अपरनाम हरिवंश पुराण भी है । सत्यविजय ग्रंथमाला अहमाबाद से प्रकाशित है । नं० २ पाण्डवपुराण - कवि रामचंद्र सं० १५६० से पूर्व । नं ० ३ हरिवंशपुराण - धर्मकीर्ति भट्टारक सं० १६७१ । नं०४ हरिवंशपुराणश्रुतकीर्ति । नं० ५ हरिवंशपुराण - जयसागर नं० ६ हरिवंशपुराण - जयानंद । ७ हरिवंशपुराण - मंगरस । इन सब के लेखक व रचनाकाल अज्ञात हैं । लघुपाण्डव चरित्र के लेखक भी अज्ञात हैं 1109
जैन संस्कृत साहित्य का एक अनुशीलनात्मक अध्ययन
संस्कृत साहित्य विश्वभर में अपनी समृद्धि के लिए अनन्यतम स्थान रखता है - यह एक निर्विवाद तथ्य है । जीवन और जगत का व्यापक चित्र प्रस्तुत करने वाला यह संस्कृत साहित्य न केवल बिभिन्न दिशा में बोध प्रदान करता है वरन् यह काव्य सौंदर्य से भी संपन्न है । सरसता संस्कृत साहित्य की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विशेषता है । संस्कृत साहित्य की इस व्यापक विशालता और समृद्धि में जैन कवियों की कृतियों का योगदान भी अति महत्वपूर्ण है ।
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काव्य चमत्कार, सौंदर्य सृष्टि, रसानुभूति आदि किसी भी दृष्टि से जैन कृष्ण संस्कृत साहित्य कम महत्वपूर्ण नहीं है । सांस्कृतिक एवं नैतिक आदर्शों की स्थापना और उनके विकास में इस साहित्य का जो गरिमापूर्ण योगदान रहा है वह श्लाघनीय है । ऐसे अनेक चरित्रों की अवतारणा जैन संस्कृत श्रीकृष्ण साहित्य में हुई हैं जो न केवल प्रभावशाली आदर्शमय हैं अपितु जो स्वस्थ समाज - रचना और व्यक्ति कल्याण के लिए हितकर एवं अनुकरणीय हैं ।
सामान्यतः जैन संस्कृत श्रीकृष्ण साहित्य में जीवन के सरस आमोदप्रमोद एवं सुखवैभव के चित्रण के साथ-साथ जीवन मूल्यों की व्याख्या भी
१०८ जैन साहित्य और इतिहास, ले० नाथूराम प्रेमी पृ० ३८३-८४ १०६. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ० ५५
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