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जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य जिसमें एक महापुरुष का वर्णन हो वह पुराण तथा जिनमें तिरसठ शलाका पुरुषों का वर्णन रहता है वह महापुराण है और जो पुराण का अर्थ है वही धर्म है। 'सत्वधर्मः पुराणार्थः' अर्थात् पुराण में धर्म कथा का प्ररूपण होना चाहिए। कृति के ७१वें पर्व में बलराम, श्री कृष्ण, उनकी ८ रानियों का एवं प्रद्युम्न आदि का वर्णन कवि ने किया है। (११) पाण्डव-पुराण (भट्टारक वादिचन्द्र)
प्रस्तुत पौराणिक काव्य में १८ सर्ग हैं ।10) इसकी रचना सं० १६५४ में नोधक नगर में हुई थी । इनके गुरु प्रभाचंद्र थे । इनके द्वारा रचित अनेक कृतियाँ उपलब्ध हैं । यथा--पावपुराण, ज्ञान सूर्योदय नाटक, पवनदूत, श्रीपाल आख्यान (गुजराती हिंदी), यशोधर चरित्र, सुलोचना चरित्र, होलिका चरित्र और अंबिका कथा । इसकी एक हस्तलिखित प्रति जयपुर के तेरहपंथी बड़े मंदिर में उपलब्ध है। (१२) महापुराण (मल्लिषेणसूरि)
मल्लिषेणसूरि विभिन्न विषयों के मर्मज्ञ पंडित तथा उच्चकोटि के कवि थे। इनकी रचना "महापुराण' में कुल २००० श्लोक हैं, इनमें ६३ शलाका पुरुषों की कथा का संक्षिप्त में वर्णन किया गया है। इसका अपरनाम त्रिषष्टि-महापुराण या त्रिषष्टि शलाका पुराण भी है। रचना सुंदर और प्रसादगुण युक्त है। रचयिता और रचनाकाल
__महापुराण की रचना का समय शक ९६६ वि० सं० ११०४ ज्येष्ठ सुदि पंचमी दिया गया है, इसलिए मल्लिषण विक्रम की ११वीं के अंत में और १२ वीं सदी के प्रारंभ के प्रसिद्ध विद्वान हैं। मल्लिषेण की गुरु-परंपरा इस प्रकार है। गंगनरेश रायमल्ल और सेनापति चामुण्डराय के गुरु अजितसेन के शिष्य कनकसेन, कनकसेन के शिष्य जिनसेन और जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण हैं । ये एक बड़े मठपति, कवि और बड़े मंत्रवादी थे। धारवाड जिले के मुलगुंद में इनका मठ था जहाँ पर यह ग्रंथ निर्मित हुआ था। इनकी अन्य कृतियाँ नागकुमारकाव्य, भैरव पद्मावतीकल्प, सरस्वतीमंत्रकल्प, ज्वालिनीकल्प और कामचाण्डालीकल्प हैं । ये सारी कृतियाँ मंत्रवादी रचनाएं हैं।102
१०२. जि. र० को० पृ० २४३, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८८ १०३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, खण्ड ६, पृ० ६५, ले० गुलाचंद्र चौधरी
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