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________________ १०० जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य सिद्ध होती है कि वे मध्यकालीन साहित्य और संस्कृति के चमकते हुए हीरे थे । (६) लघु त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित - मेघविजय उपाध्याय मेघविजय द्वारा रचित प्रस्तुत कृति में हेमचंद्राचार्य विरचित त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित का ही आधार रहा है। इसमें विशेष रूप से शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के चरित्रों के संकलन में अपनी प्रतिभा का विशेष परिचय दिया है । इसमें तीर्थंकर चरित्र, रामायण, महाभारत, बलदेव, बासुदेव, प्रतिवासुदेवों का वर्णन भी यथाप्रसंग कवि ने किया है । इसका श्लोक प्रमाण ५ हजार है । प्रस्तुत कृति के लेखक सम्राट अकबर के कल्याणमित्र तपागच्छीय हीरविजयसूरि जी की परंपरा में हुए हैं । इनके रचित ग्रंथों में जो प्रशस्तियां दी गई हैं उनमें कुछ का रचनाकाल दिया गया है, जो वि० सं० १७०६ से १७६० तक का है । कृतिकार ने अनेक काव्यग्रंथ रचे हैं । इनता ही मैं विवेचन कर आगे बढ़ रहा हूं । त्रिष्टिशलाका पुरुष चरित तथा महापुराण पर आधारित कुछ अन्य रचनाओं की नामावली इस प्रकार है १. लघु महापुराण या लघुत्रिषष्टि लक्षण महापुराण - इसके रचनाकार हैं- चंद्रमुनि २. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - रचयिता विमलसूरि ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित रचयिता - वज्रसेन ४. त्रिषष्टिशलाकापंचशिला - रचयिता कल्याणविजय के शिष्य ५. एक अज्ञात लेखक ने ६३ गाथाओं में त्रिषष्टिशलाकापुरुष विचार नामक ग्रंथ की रचना की है 196 (१०) विषष्टिशला कापुरुष विषयक काव्य महापुराण – उत्तरपुराण ( जिनसेन व गुणभद्रं) महापुराण जिसका अपर नाम उत्तरपुराण भी है । यह जैन संस्कृत कृष्ण साहित्य परंपरा की एक महत्त्वपूर्ण एवं विशाल कृति है । महापुराण दो भागों में रचित है, प्रथम भाग का नाम आदिपुराण तथा द्वितीय भाग का नाम उत्तरपुराण है । ७६ पर्वों में यह संपूर्ण ग्रंथ निर्मित हुआ है । ६६. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग - ६, पृ० ७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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