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संस्कृत - जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
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पंचम पर्व में शांतिनाथ का चरित्र जो एक ही भव में तीर्थंकर एवं चक्रवर्ती दोनों होने से दो चरित्र गिने गए हैं।
• षष्ठ पर्व में कुन्थुनाथ से मुनिसुव्रत तक के ४ तीर्थंकर, चार चक्रवर्ती, दो वासुदेव, दो बलदेव तथा दो प्रतिवासुदेव इस प्रकार १४ महापुरुषों का चरित वर्णित हुआ है । इनमें कुन्थुनाथ और अरहनाथ उसी भव में चक्रवर्ती हुए । अतः इनकी दो चक्रवर्तियों के रूप में गिनती की गयी है ।
• सप्तम पर्व में नमिनाथ, १० वें व ११ वें चक्रवर्ती हरिषेण और जय तथा आठवें बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव - राम, लक्ष्मण, रावण के चरित मिलाकर ६ महापुरुषों के वर्णन हैं ।
• अष्टम पर्व में नेमिनाथ तीर्थकर तथा नवम वासुदेव, कृष्ण, बलदेव बलभद्र, तथा प्रतिवासुदेव जरासंध को मिलाकर ४ महापुरुषों के चरित वर्णित हैं ।
• नवम पर्व में पार्श्वनाथ तीर्थंकर, और ब्रह्मदत्त नामक १२ वें चक्रवर्ती के चरित वर्णित हैं ।
• दशम पर्व में भगवान महावीर का जीवन वृत्त जो कि १३ सर्गों में है, ग्रंथकार को प्रशस्ति भी है। ऐतिहासिक दृष्टि से प्रशस्ति अत्यंत उपयोगी है।
प्रस्तुत कृति के रचनाकार हेमचंद्र के जोवन वृत्त पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है । प्रशस्ति के आधार पर ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ की रचना हेमचंद्र ने चौलुक्य नृप कुमारपाल के अनुरोध से की थी । " डॉ० बूल्हर ने इसकी रचना का समय वि० सं० १२१६ से १२२८ माना है । वि० सं० १२२६ में हेमचंद्र का स्वर्गवास हुआ था 195
जैन परंपरा में मान्य ६३ शलाका पुरुषों ( २४ तीर्थंकर, १२ चक्र वर्ती, & वासुदेव, & बलदेव, 8 प्रतिवासुदेव) के जीवन चरित इस ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय रहे हैं ।
प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ के पृ० २१६ में डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा व्यक्त यह धारणा आचार्य हेमचंद्र के मूल्यांकन में सफल सहायक
४. पर्व १० प्रशस्ति, पद्य १६-२०
६५. हेमचंद्राचार्य जीवन चरित्र : ले, कस्तूरमल बांठिया,
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