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________________ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य विरहानलतप्ता सीदति सुप्ता 'रचितनलिनदलतल्पतले मरकतविमले । न सखीमभिनन्दति गुरुमभिवन्दति निन्दति हिमकरनिकरंपरितापकरम् करकलितकपोलं गलितनिचोलं नयति सततरुदितेन निशामनिमेषदृशा मनुते हृदि भारं मुक्ताहारं दिवसनिशाकरदीनमुखी जीवितविमुखी ॥2 इस प्रकार इस काव्य में विरहिणी राजीमती की विरह वेदनाओं का गंभीर चित्रण हुआ है। (८) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित-आचार्य हेमचन्द्र ... श्वेतांबर जैन कृष्ण साहित्य परंपरा की यह एक अति महत्त्पूर्ण रचना है। इसके कर्ता आचार्य हेमचन्द्र "कलिकालसर्वज्ञ" के विरुद से विभूषित थे। वस्तुतः यह समर्थ कवि उच्चकोटि की काव्यात्मक प्रतिभा से सम्पन्न कुशल काव्य-शिल्पी थे। इस महाचरित में जैनों के कथानक, इतिहास, सिद्धांत व तत्त्वज्ञान का कवि ने समावेश किया है। यह ग्रंथ १० पों में विभक्त है तथा प्रत्येक पर्व में अनेकों सर्ग हैं। ग्रंथ का श्लोक प्रमाण ३६००० है ।93 तिरसठ शलाका पुरुषों का चरित १० पर्यों में इस प्रकार कवि ने संयोजित किया हैं___० प्रथम पर्व में ऋषभदेव व भरत चक्रवर्ती । ० द्वितीय पर्व में अजितनाथ व सगरचक्री । ० ततीय पर्व में संभवनाथ से लेकर शीतलनाथ तक के ८ तीर्थंकरों के जीवन वृत्त। ० चतुर्थ पर्व में श्रेयांसनाथ से लेकर धर्मनाथ तक पांच तीर्थंकर, पांच वासुदेव, पांच प्रति-वासुदेव, पांच बलदेव तथा दो चक्रवर्तीमघवा व सनत्कुमार इस प्रकार २२ महापुरुषों का वर्णन किया गया है। १२. नेतिदूत ६-८८, जैन साहित्य नो इतिहास खंड २, ले० प्रो० हीरालाल 1. रसिकदास कापडिया, पृ०४४६, ६३. जैन आत्मानंद सभा भावनगर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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