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________________ १४ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य कुल १२६ पद्य हैं । इसमें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्रवर्णन है। पण्डित नाथराम प्रेमी ने इस कवि को दिगंबर जैन संप्रदाय का सिद्ध किया है। खम्भात के चितामणि पार्श्वनाथ मंदिर में एक शिलालेख है जो वि० सं० १३५२ का है। इस लेख में २८ से ३१वें पद्यों में मालवा, सपादलक्ष और चित्तौड (चित्रकट) से संभात में आए हुए सांगण जयता और प्रल्हादन आदि धनी श्रावकों का उल्लेख है। जिन्होंने उक्त मंदिर की निरंतर पूजा होते रहने के लिए व्यापार पर कुछ लाग बांध दी थी। इनमें सांगण हुंकारवंश (हम्बड) के और जयता सिंहपूर वंश (नरसिंहपुरा) के थे। संभव है कि इनमें से पहले श्रावक सांगण के पुत्र ही विक्रम रहे हों। सांगण आदि दिगंबर सप्रदाय के मालूम होते हैं । क्योंकि, इस लेख के चौथे पद्य में सहस्रकीति और सत्ताइसवें पद्य में यशःकोति गुरु का उल्लेख है और ये दोनों दिगंबर साध हैं। इसके सिवाय हम्बड और नरसिंहपुरा जातियों के श्रावक इस समय भी दिगंबर आम्नाय के अनुयायी हैं ।83 दूसरा तर्क देने वाले श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई हैं। इन्होंने अपने "जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' में सांगण सुत विक्रम को गुर्जर महाकवि ऋषभदास का भाई माना है और इनका समय १७वीं शती निर्धारित किया है। श्री प्रेमीजी ने इस मत की आलोचना की है ।84 तीसरा मत मुनि विद्याविजय जी का है। इनकी मान्यता है कि वि० की १२वीं शदी के कर्णावती के मन्त्री सांगण के पुत्र विक्रम थे । इन तीनों मान्यताओं की समीक्षा मुनि विनयसागर जी ने इस प्रकार की है-खरतरगच्छालंकार युगप्रधानाचार्य गुर्वावलि (१४वीं शदी के उत्तरार्ध की रचना)के अनुसार श्रीजिनपतिसूरिजी के शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरि ने वि० सं० १२८५ से १३३० तक लगभग १२, १५ शिष्य कीर्ति नन्दी में दीक्षित किए थे, जिनमें यशःकीर्ति का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त एक और बात यह भी है कि इसी गुर्वावलिमें सं० १२२६ में श्री जिनेश्वरसरि जी की अध्यक्षता में एक यात्रासंघ निकला था जो क्रमशः यात्रा करते-करते खंभात में पहुंचा। वहाँ मंदिर में फूलमाला की बोलियाँ लगी थीं। उनमें सांगणसुत ने द्रमों में चमरधारक पद धारण किया था । ८३. जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी पृ० ३६१ ८४. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २८६, ४८५, ७६०, ७६२, ८८२, ८६६, ६०४, १००३ । ८५. नेमिदूत, कोटा प्रकाशन वि० सं० २००४, प्रस्तावना, पृ० २ 20 ° . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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