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संस्कृत - जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
भारत की राजनैतिक परिस्थिति दिग्दर्शन
राजनीतिक स्थिति का दिग्दर्शन करते हुए जिनसेन ने लिखा है कि उस समय उत्तर दिशा में इन्द्रायुध, दक्षिण दिशा में कृष्ण का पुत्र श्री वल्लभ और पूर्व में अवन्तिनरेश वत्सराज तथा पश्चिम में सौरों के अधिमण्डल सौष्ट्र में वीर जयवराह राज्य करते थे । 78 इसके अलावा भगवान महावीर से लेकर गुप्तवंश एवं कल्कि के समय तक मध्यदेश के शासन कर्ता प्रमुख राजवंशों की परंपराओं के उल्लेख, अवन्ती के गद्दीपर आसीन होनेवाले राजवंश और रासभवंश के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य का भी क्रम दिया है । 79 भगवान महावीर से लेकर ६८३ वर्ष की सर्वमान्य गुरुपरम्परा और उसके आगे अपने समय तक की अन्यत्र अनुपलब्ध अविच्छिन्न गुरु परंपरा भी दी गयी है । 80 अपने पूर्ववर्ती अनेक कवियों तथा कृतियों का परिचय भी प्रस्तुत पुराण में उपलब्ध होता है । ग्रंथकर्ता जिनसेन यद्यपि दिगंबर संप्रदाय से संबद्ध थे, तथापि हरिवंश के अंतिम सर्ग में उन्होंने प्रभु महावीर के विवाह प्रसंग को उल्लेखित किया है । यह बात दिगंबर संप्रदाय को मान्य नहीं है । 81
जिनसेन ने अपने से पूर्ववर्ती जिन विद्वानों का उल्लेख किया है वे हैं— समन्तभद्र, सिद्धसेन, देवनन्दि, वज्रसूरि, महासेन, सुलोचना कथा के कर्ता, रविषेण पद्मपुराण के कर्ता, जटासिंहनन्दि वरांगचरित के कर्ता, शान्त किसी काव्य ग्रंथ के कर्ता, विशेषवादि गद्यपद्यमय विशिष्ट काव्य के रचयिता कुमारसेन, वीरसेन, कवियों के चक्रवर्ती जिनसेन - पाश्र्वाभ्युदय के कर्ता तथा एक अन्य कवि वर्धमान पुराण के कर्ता हैं । 2
इससे जिनसेन के अध्यवसाय का पता चलता है ।
(७) नेमिदूत
यह एक लघुकाव्य है । नेमिदूत के रचयिता विक्रम कवि हैं । इसके
७८. हरिवंशपुराण सर्ग ६६-५२-५३
७६. हरिवंशपुराण सर्ग ६०, ४८७- ४६२
८०.
हरिवंशपुराण सर्ग ६६, २१-३३
८१.
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मंगलम् ।
८२. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पृ० ४८, भाग-६, डॉ० गुलाबचंद चौधरी
६६, ८ यशोदयायां सुतया यशोदया पवित्रया वीरविवाह
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