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संस्कृत - जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
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(६) पुराणसार संग्रह ( दामनन्दि )
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प्रस्तुत कृति के रचयिता दामनन्दि आचार्य हैं । प्रस्तुत कृति में आदिनाथ, चंद्रप्रभ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के जीवन चरित्र उपलब्ध होते हैं । २७ सर्गों वाली इस कृति में आदिनाथ के ४, चंद्रप्रभ के १, शान्तिनाथ के ६, नेमिनाथ के ५, पार्श्वनाथ के ५ और महावीर के ५ सर्ग संबंधित हैं । ग्रन्थ के नाम को लेकर भिन्न-भिन्न सूचना ग्रन्थ की अंतिम पुष्पिका - वाक्यों में उपलब्ध होती है; जिसके अनुसार १० सर्गों में पुराणसारसंग्रह, बारह में पुराणसंग्रह, दो में महापुराण - पुराणसंग्रह, एक में महापुराणसंग्रह, एक में केवल महापुराण और तीन में केवल अर्थाख्यान संग्रह ही सूचित किए गए हैं ।
इसका मैंने अधिक विवेचन नहीं किया क्योंकि मेरे अध्ययन से इसका उतना घनिष्ठ संबंध नहीं है ।
(७) हरिवंशपुराण - आचार्य जिनसेन
हरिवंश पुराण के कर्त्ता जिनसेन दिगंबर आचार्य थे । समग्र जैन वाङमय में इस कृति का अपनी विशेषताओं के कारण बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। इस बृहद्ग्रंथ में कुल ६६ सर्ग हैं, और कुल श्लोक १२ हजार हैं । ग्र ंथ के शीर्षक से ही यह स्पष्ट है कि हरिवंश पुराण का मुख्य विषय भगवान अरिष्टनेमि के वंश का परिचय है । हरिवंश ही भगवान का वंश है और इसमें यादवकुल का वर्णन १६ वें सर्ग से ६३ वें सर्ग तक है । ३२ वें सर्ग में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव का वर्णन है । ३५ वें सर्ग से श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन किया गया है । यहाँ से अंतिम सर्ग तक श्रीकृष्ण के जीवन के विभिन्न प्रसंगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । कालियामर्दन, कंसवध, उग्रसेन की मुक्ति, सत्यभामा से विवाह, जरासंध के पुत्र का वध, प्रद्युम्न का जन्म, जाम्बवती से विवाह, दक्षिणभारत की विजय, श्रीकृष्ण का दक्षिण गमन, कृष्ण मरण, बलदेव विलाप, बलदेव की जिन दीक्षा आदि कृष्ण जीवन के प्रसंगों की अवधारणा “हरिवंशपुराण' में मिलती है जो जैन श्रीकृष्ण कथा की रूपरेखा प्रस्तुत कर देती है ।
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आचार्य जिनसेन पुन्नाट प्रदेश ( कर्नाटक का प्राचीन नाम ) के मुनिसमुदाय के आचार्य थे । इनके गुरु का नाम कीर्तिषेण था । इनके माता
७५. हरिवंशपुराण -- आचार्य जिनसेन, प्रस्तावना, पृ० ३, संपादक - पन्नालाल जैन प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
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