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________________ संस्कृत-जैन श्रीकृष्ण-साहित्य ८६ मंत्रणा, दूतप्रेषण, युद्धवर्णन, नगरवर्णन, समुद्र, पर्वत, ऋतु, चंद्र, सूर्य, पादप, उद्यान, जलक्रीडा, पुष्पाक्चय, सुरतोत्सव आदि का चित्रण सुंदर रीति से विवेचित है। कथानक में हर्ष, शोक, क्रोध, भय, ईर्ष्या, घृणा आदि भावों का संयोजन हुआ है। शब्दक्रीडा के बावजूद रस का वैशिष्ट्य विद्यमान है । महत्कार्य और महदुद्देश्य का निर्वाह भी हुआ है। विवाह, कुमारक्रीडा, यौवराज्यावस्था, पारिवारिक कलह, दासियों की वाचालता का भी संदर चित्रण हुआ है । यथा विसा रिभिः स्नानकषायभूषितविभीषितेव प्रियगान्नमङ्गना । शुचौ समालिङ् गति यत्र साखे, हृदेतरन्ती कलहंससंकुले ॥1 ग्रीष्मऋतुओं में जहां पर सुंदर हंसों से पूर्ण सरयू नदी के घाटों पर तैरती हुई युवती स्नान के समय लगाए लेप आदि से रंगी हुई मछलियों से डरकर अपने पति के शरीर से चिपट जाती हैं। द्वितीय अर्थ हस्तिनापुर में सुंदर हंसों से परिव्याप्त और उनके कोलाहल से युक्त स्वच्छ तालाब में तैरती हुई अंगनाएं उनके शरीर से चिपट जाती हैं। प्रकृतिचित्रण __ कविवर धनंजय ने प्रस्तुत महाकाव्य में प्रकृति के रम्यरूप को प्रस्तुत कर मानवीय भावनाओं को उलित किया है। यथा भूजायते प्रदेशेऽस्मिन्सालतालीसमाकुले। अभिख्यातियुता नित्यं शष्पच्छायोदकान्विता ।।72 साल एवं ताल वृक्षों से व्याप्त, भोज पत्रों के समान विस्तृत और सनतल क्षेत्र में दूब की छाया और जल से पूर्ण शीतल भूमि अत्यंत रमणीय प्रतीत होती है। रसवर्णन प्रस्तुत काव्य में वीररस अंगी रस है तथा अंग रूप में शृंगार, भयानक, रौद्र और बीभत्स रसों का निरूपण हुआ है। ७१. द्विसन्धानम्, शिवदत्त शर्मा, मिर्णयसागर प्रेस, बंबई, १-१२, १८६५ ई० ७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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