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________________ ८८ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य लगी है तो दूसरी ओर श्रीकृष्ण बलराम पाण्डवों के साथ राजगृह की ओर बढ़ते हैं । पन्द्रहवें सर्ग में वर्णन है कि राम की सेना समुद्र तट तक पहुंच गयी और वानर योद्धाओं ने वनविहार तथा जलक्रीडाएँ कीं । दूसरी ओर यादववंशी राजागण गंगा के किनारे जाकर वन विहार करने लगे । सोलहवें सर्ग में राम की सेना ने लंका पर आक्रमण कर दिया है इस बात को सुनकर रावण अपनी सेना को तैयार हो जाने का आदेश देता है। दोनों पक्षों की सेनाएँ रणभूमि में आमने सामने आ जाती हैं । राम के बाणों के समक्ष रावण के प्रख्यात पुत्र योद्धा मेघनाद तथा भाई कुंभकर्ण आदि टिक नहीं पाते हैं । दूसरी ओर श्रीकृष्ण की सेना जरासंध पर आक्रमण करती है और अपने प्रचंड प्रहारों से जरासंध के पक्ष में आतंक मचा देती है । कबंध नाचने लगते हैं । सतरहवें सर्ग में रावण की सेना की प्रबलता का चित्रण भी किया गया है । उसके सैनिक कवचधारी थे, अतः बाण उनके शरीर तक नहीं पहुंच पाते थे । राम ने अग्नि के समान तीक्ष्ण बाणों की वर्षा कर दी, अतः राम की विजय हुई | दूसरी ओर श्रीकृष्ण, बलराम, अर्जुन आदि ने जरासंध की सेना को घेर लिया । भयंकर बाण वर्षा होने लगी और श्रीकृष्ण द्वारा जरासंध का वध हो जाता है । अठारहवें सर्ग में लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर राम सीता सहित पुष्पक विमान में बैठकर लंका से अयोध्या में आ जाते हैं । दूसरी ओर श्रीकृष्ण जरासंध के पक्ष को पूर्ण ध्वस्त करके पाण्डवों के साथ मित्रता निबाहते हुए राज्य का संचालन करते हैं इस प्रकार द्विसंधान काव्य में कवि धनंजय ने श्रीकृष्ण और राम की कथा के प्रमुख अंशों का वर्णन एक साथ किया है । इस दुर्गम कार्य में कवि को अभिनंदनीय सफलता भी मिली है । काव्य का आरंभ तीर्थंकरों की स्तुति से हुआ है । मंत्रणा, दूत प्रेषण, युद्धवर्णन, नगर वर्णन, समुद्र, उद्यान वन आदि के वर्णन आये हैं । कथानक का संयोजन इस प्रकार हुआ है कि उसमें हर्ष, शोक, भय, रोष आदि विभिन्न मनोभावों का सुंदर चित्रण हो पाया है । काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से भी प्रस्तुत रचना समृद्ध है । महाकाव्यत्व- प्रस्तुत काव्य की राम-कृष्ण कथा १८ सर्गों में विभक्त है । काव्यारंभ तीर्थंकरों की वंदना से हुआ है । इतिवृत्त पुराण प्रसिद्ध है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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