SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६ और लक्ष्मण के साथ वन को गये युधिष्ठिर को राज्य सौंप कर पाण्डु किया । दुर्योधन ने छलपूर्वक जुए में पाण्डवों को वनवास भोगना पड़ा । जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य और दशरथ मुनि बने । दूसरी ओर ने तपस्या आरंभ करने का निश्चय युधिष्ठिर से राज्य जीत लिया । पांचवे सर्ग में राम का आगमन दण्डकारण्य में होता है । लक्ष्मण चंद्रहास खड्ग प्राप्त करते हैं । शूर्पणखा राम पर मोहित होती है किंतु अपमानित और असफल होकर वह सीताहरण के लिए वातावरण बना देती है। राम लक्ष्मण राक्षसों का वध करते हैं । पाण्डव अज्ञात वास के निमित्त विराट राजा के यहां पहुंचते हैं। कीचक द्रौपदी को देखकर उस पर मोहित हो जाता है । भीम कीचक का वध कर देता है । छठे सर्ग में राम लक्ष्मण का खर दूषण से युद्ध होता है । अपनी शक्ति और पराक्रम से वे खर दूषण की सेना को पराजित कर देते हैं । खर दूषण का वध हो जाता है । अर्जुन और भीम का युद्ध उन दस्युओं के साथ होता है जो गायों को चुराते हैं । वे उनको बंधन से मुक्त करके गायों की रक्षा करते हैं । सातवें सर्ग में रावण शूर्पणखा को सान्त्वना देने के लिए पहुंचता है । दण्डक वन में सीता के सौंदर्य से वह प्रभावित हो जाता है और उसका अपहरण कर वह लंका की ओर चल देता है । दूसरी ओर द्यूतक्रीडा में पराजय के कारण राज्यहीन युधिष्ठिर को भीम कहता है कि आपको अपने अपमान का बदला लेना चाहिए । द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की सहायता से हमें विजय प्राप्त होगी । और, धर्मराज युधिष्ठिर द्वारिका के लिए प्रस्थान करते हैं । आठवें सर्ग में वर्णन है कि रावण को इस बात की आशा थी कि अपहरण के बाद निराश सीता आत्मसमर्पण कर देगी, किंतु सीता अपने मार्ग पर दृढ़ रहती है । द्वारिका के राजभवन के गवाक्षों से युधिष्ठिर सागर दर्शन करते हैं। उनके लिए दुर्योधन की निरंकुशता और अन्याय असह्य हो गये, किंतु वे वचन बद्धता के कारण निरुपाय थे । नौवें सर्ग में सीताहरण के कारण राम चिंतित और दुःखित बताये गए हैं । वे सीता की खोज करते हैं । विद्याधर सुग्रीव की पत्नी का अपहरण कर साहसगति ने अनीतिपूर्वक राज्य हथियाया और उसका शासन किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy