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संस्कृत जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
स्वयं धनंजय ने अपनी रचना नाममाला ( प्रमाणमकलंकस्य ) में अकलंक का निर्देश किया है । 70 अतः कृवि का काल अकलंक के पूर्व का नहीं हो सकता । निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि कवि धनंजय का काल अकलंक के पश्चात् और वादिराज के पूर्व का ही हो सकता है । अनुमानतः उनका समय ईसा की आठवीं शताब्दी के लगभग है ।
कथावस्तु
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प्रथमसर्ग - ग्रंथारंभ में कवि मुनिसुव्रत और नेमिनाथ तीर्थंकरों को नमस्कार करता है । राम कथा का आरंभ करते हुए अयोध्या और श्रीकृष्ण कथा का आरंभ करते हुए हस्तिनापुर का वर्णन किया गया है । प्रजाजन शांति और सुख से जीवन यापन करते हैं । प्रथम सर्ग में यही चित्रण है ।
द्वितीय सर्ग में दोनों राज-परिवारों का वर्णन है । अयोध्या में राजा दशरथ और हस्तिनापुर में राजा पाण्डु का राज्य है । राजा दशरथ की पट्टरानी कौशल्या और राजा पाण्डु को पट्टरानी कुन्ती थी । दोनों अपने सदाचार और उच्चशील के लिए विख्यात थीं ।
तृतीय सर्ग में कौशल्या के गर्भ धारण करने पर सर्वत्र छाये हुए प्रसन्न वातावरण का वर्णन किया गया है । माता कौशल्या राम को जन्म देती है । कैकेयी के भरत और सुमित्रा के लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न नामक पुत्र होते हैं । राजा जनक की पुत्री जानकी के साथ राम का विवाह हुआ पाण्डुराजा की पट्टरानी कुन्ती युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन को और माद्री नकुल एवं सहदेव को जन्म देती है । ये पांडव कहलाये । धृतराष्ट्र के सौ पुत्र हुए जो कौरव कहलाए ।
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चौथे सर्ग में वर्णन है कि एक दिन दशरथ ने दर्पण में अपने श्वेत केश देखे और निश्चय कर लिया कि राम को राज्य सौंपकर अब मुझे तपस्या आरंभ करनी चाहिए। कैकेयी ने दशरथ से वर मांगा कि राम को १४ वर्ष का वनवास मिले और भरत को अयोध्या का राज्य । राम, सीता
७०. प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम् । द्विसन्धानकवेः काव्यं, रत्नत्रयमपश्चिमम् – नाममाला, भारतीयज्ञानपीठ काशी, १६४० ई० श्लोक २०१ पृ० ६२
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