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संस्कृत-जैन श्रीकृष्ण-साहित्य
८३ अरिष्टनेमि चरित वि० सं० १६६८ विजय गणि प्रद्युम्न चरित वि० सं० १६७१ रतनचन्द हरिवंशपुराण वि० सं० १६७१ भट्टारक यशःकीर्ति हरिवंशपुराण वि० सं० १६७५ , श्रीभूषण नेमिनाथ चरित वि० सं० १९६५ कीतिराज प्रद्युम्नचरित १७वीं शदी मल्लिभूषण
इसके अतिरिक्त संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य से संबंधित एक अन्य विधा नाटक को लेकर भी कुछ कृतियां मिलती हैं जिनमें विशेष उल्लेखनीय हस्तिमल्ल के दो नाटक हैं
(१) विक्रान्त कौरव (२) सुभद्रा
इसके कृतिकार के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है । केवल कुछ सूचना मिलती है, जो इस प्रकार है। एक बार एक मदोन्मत्त उद्दण्ड हाथी को वश में करके हस्तिमल्ल ने पाण्ड्य राजा को प्रभावित किया था तब राजा ने उन्हें यही नाम देकर इसी उपाधि से उन्हें विभूषित किया। दिगंबर जैन संप्रदाय के साहित्यकारों में इनका विशेष नाम गिनाया जाता है । ये एक मात्र ऐसे नाटककार हैं जिनकी रचित नाटक रचनाएँ उपलब्ध हैं । इनका हम पूर्व में ही उल्लेख कर चुके हैं । ये जन्म से ब्राह्मण थे, परन्तु श्री समन्तभद्र कृत देवागम स्तोत्र को सुनकर ये प्रभावित हुए और इन्होंने जैन दीक्षा अंगीकार की।
(५) द्विसन्धान (राघव पाण्डवीय) महाकाव्य : कृति एवं कृतिकार . . द्विसन्धानम् काव्य एक उत्कृष्ट कोटि की रचना है। इसमें रामायण, महाभारत दोनों कथाओं को एक साथ प्रस्तुत किया गया है। निश्चय ही इस काव्य के कर्ता धनंजय की उच्चश्रेणी की काव्यप्रतिभा का परिचय इस विशिष्ट रचना से भलीभांति मिल जाता है। कवि ने इस कृति में प्रत्येक छंद की रचना इस प्रकार से की है कि उसके दो अर्थ व्यक्त हो जाते हैं। एक अर्थ रामकथा से संबंधित है तो दूसरा अर्थ श्री कृष्ण कथा से । इसी कारण इस रचना का अपर शीर्षक राघवपाण्डवीयकथा भी है।
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