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________________ अनेकान्तिक दृष्टि का विकास अपेक्षा से अनित्य है। चूंकि आत्मा ज्ञान स्वरूप है अर्थात् ज्ञान और आत्मा में भी अपृथक् सम्बन्ध है और ज्ञान में उत्पाद-व्यय होता है। अतः आत्मा में भी उत्पाद-व्यय उपस्थित है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अन्य द्रव्यों के समान ही आत्मा भी अनेकान्त रूप है। धवला में भी तो यही कहा गया है कि आत्मा की अनेकान्तिकता असिद्ध नहीं है; क्योंकि अनेकान्त के बिना उसका अर्थक्रियाकारित्व नहीं बन सकता।' ___इस प्रकार विश्व के सभी पदार्थों में चाहे वे चेतन हों या अचेतन; उनमें अनन्त धर्मों, अनन्त गुणों एवं अनन्त पर्यायों का सहवास है । जैनदर्शन के अनुसार पदार्थ मात्र ही अनेकान्त रूप है। यही कारण है कि केवल एक ही दृष्टिकोण से दिये गये पदार्थ के निश्चय को जैन-दर्शन अपूर्ण एवं एकान्तिक समझता है और यह ठीक भी प्रतीत होता है; क्योंकि जब पदार्थ का स्वरूप ही कुछ इस प्रकार का है कि उसमें अपेक्षित धर्म के अतिरिक्त अनेक प्रतिद्वन्दी परस्पर विरोधी धर्म भी सापेक्ष रूप से उपस्थित रहते हैं, उनका निषेध नहीं किया जा सकता, तब वस्तु के किसी एक धर्म के आधार पर उसका निश्चय करना एकान्तवाद का ही समर्थन करना है। डा० मोहन लाल मेहता का भी कहना है कि "जो लोग एक धर्म का निषेध करके दूसरे धर्म का समर्थन करते हैं वे एकान्तवाद की चक्की में पिस जाते । वस्तु का कथंचित् भेदात्मक है, कथंचित् अभेदात्मक है, कथंचित् सत्कार्यवाद के अन्तर्गत् है, कथंचित् असत्कार्यवाद के अन्तर्गत है, कथंचित् निर्वचनीय है, कथंचित् अनिर्वचनीय है, कथंचित् तर्क-गम्य है, कथंचित् तर्क-अगम्य है। प्रत्येक दृष्टि की एक मर्यादा है उसका उल्लंघन न करना ही सत्य के साथ न्याय करना है। यही कारण है कि वस्तुओं को न केवल अस्ति रूप कहा जा सकता है और न केवल नास्ति रूप ही। उनके विषय में सापेक्षिक कथन ही सम्भव है। यही सापेक्षिक प्रकथन जैन-दर्शन के अनुसार यथार्थ एवं सत्य है। इसी यथार्थता एवं सत्यता का उद्घाटन अनेकान्तवाद करता है। अनेकान्तवाद वस्तु की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता । वह उसकी रक्षा १. (अ) घवला, खण्ड १, भाग १, सूत्र ११, पृ० १६७ । (ब) जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश भाग १, पृ० ११३ । २. जैन-दर्शन, पृ० २८२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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