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________________ अनेकान्तिक दृष्टि का विकास २९ वस्तुस्वरूप की निषेधपरक व्याख्या करने का प्रयत्न किया; वहीं महावीर ने विधायक दृष्टिकोण अपनाकर वस्तु-स्वरूप का विवेचन किया अर्थात् जिन प्रश्नों को बुद्ध ने अव्याकृत कहा, उन्हीं प्रश्नों को महावीर ने व्याकृत बताया; जहाँ बुद्ध ने निषेधात्मक उत्तर दिया, वहीं महावीर ने विधिरूप से उत्तर दिया । इसी तथ्य का स्पष्टीकरण करते हुए पं० दलसुख मालवणिया ने कहा है कि भगवान् बुद्ध ने शाश्वत और विच्छेद इन दोनों का निषेध किया और अपने मार्ग को 'मध्यम मार्ग' कहा । जबकि भगवान् महावीर ने शाश्वत और उच्छेद इन दोनों को अपेक्षा भेद से स्वीकृत करके विधि मार्ग अपनाया ।' (१) महावीर का विधायक दृष्टिकोण तथागत बुद्ध लोक की सान्तता - अनन्तता और जीव की नित्यताअनित्यता तथा जीव और शरीर के भेदाभेद सम्बन्धी दार्शनिक प्रश्नों पर मौन रहे और इन प्रश्नों को उन्होंने अनुपयोगी बताया, क्योंकि जब वस्तु नित्यता- अनित्यता, एकता - अनेकता आदि सभी पक्ष सापेक्षिक रूप से विद्यमान हैं तब वस्तु स्वरूप का विवेचन एकान्तिक भाषा के द्वारा कैसे सम्भव हो सकता है । किन्तु बुद्ध की अपेक्षा महावीर की विशेषता यह है कि उन्होंने उपर्युक्त सभी प्रश्नों को सार्थक एवं व्याकरणीय बताया; क्योंकि जब वस्तु स्वरूप में नित्यता- अनित्यता आदि सभी पक्ष विद्यमान हैं तब किसी एक पक्ष को स्वीकार करना अथवा उन सबका निषेध करना कहाँ का न्याय है ? वस्तुतः उनमें से किसी एक को स्वीकार करने पर जो दोष उत्पन्न होता है वही दोष उन सबका निषेध करने पर भी उत्पन्न होता है । यही कारण है कि महावीर ने उनमें से किसी भी पक्ष का निषेध न कर उन सबको स्वीकार किया और उनमें समन्वय का प्रयत्न किया । उनके दृष्टिकोण से वस्तु को यथार्थता या उसकी सम्पूर्णता का ज्ञान एकान्तता या दुराग्रह से नहीं हो सकता, क्योंकि उससे विपक्ष में निहित सत्य का ज्ञान प्राप्त करना असंभव हो जाता है। वस्तुतः शाश्वतवाद, उच्छेदवाद, नित्यवाद, अनित्यवाद, भेदवाद, अभेदवाद आदि जितने भी मत-मतान्तर हैं, वे सभी वस्तुतत्त्व के कम से कम एक-एक पक्ष का निरूपण तो करते ही हैं । इसलिए आपेक्षिक रूप से सत्य हैं । यद्यपि महावीर ने भी उन १. श्री आनन्दऋषि अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० २६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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