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१० जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या मैं ठीक से बिना जाने कैसे कह दूँ-"यह अच्छा है" और "यह बुरा" ? यदि कहता हूँ कि "यह अच्छा है" या 'यह बुरा है" तो यह असत्य होगा। जो मेरा असत्य भाषण होगा, सो मेरा घातक होगा, वह अन्तराय बाधक) होगा । अतः वह असत्य भाषण के भय और घृणा से न यह कहता है कि "यह अच्छा है" और न यह कि "यह बुरा"' । ___ इस लोक की उत्पत्ति सकारण है या अकारण | इसके सन्दर्भ में कुछ ऐसे लोग थे जो यह कहते थे कि इस विश्व की उत्पत्ति अकारण है। इसका कोई कारण नहीं हो सकता यह तो स्वयं से उत्पन्न हुआ है। अतः इसकी उत्पत्ति के लिए किसी कारण को मानना असंगत है । भगवान् बुद्ध ने कहा है कि भिक्षओं ! कोई श्रमण या ब्राह्मण ताकिक होता है। वह स्वयं तर्क करके ऐसा समझता है-आत्मा और लोक अकारण ही उत्पन्न होते हैं।२
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन में हमने देखा कि उस युग में ऐसी अनेक विचारधारायें थीं जो अपने-अपने मन्तव्यों को निरूपित कर रही थीं
१. "इध, भिक्खवे, एकच्ची समणो वा ब्राह्मणो वा इदं कुसलं ति यथाभूतं
नप्पजानाति, इदं अकुसलं ति यथाभूतं नप्पजानाति । तस्स एवं होतिअहं खो इदं कुसलं ति यथाभूतं नप्पजानामि, इदं अकुसलं ति यथाभूतं नप्पजानामि । अहं चे खो पन इदं कुसलं ति यथाभूतं अप्पजानन्तो, इदं अकुसलं ति यथाभूतं अप्पजानन्तो इदं कुसलं ति वा व्याकरेय्यं, इदं अकुसलं ति वा व्याकरेय्यं, तं ममस्स मुसा । यं ममस्स मुसा सो ममस्स विधातो। यो ममस्स विघातो सो ममस्स अन्तरायो "ति । इति सो मुसावादभया मुसावादपरिजेगुच्छा नेविदं कुसलं ति व्याकरोति, न पनिदं अकुसलं ति व्याकरोति, तत्थ तत्थ पञ्हं पुट्टो समानो वाचाविवखेपं आपज्जति अमरा विक्खे--एवं ति पि मे नो; तथा ति पि मे नो; अञ्चथा ति पि मे नो; नो ति पि मे नो; नो नो ति पि मे नो"ति । इदं, भिक्खवे, पठमं ठानं यं आगम्म यं आरब्भ एके समणब्राह्मणा अमराविवखे पिका तत्थ तत्थ पञ्हं पट्टा समाना वाचाविक्खेपं आपज्जन्ति अमराविक्खेपं ।"
वही १.३.६२ २. "इध, भिक्खवे, एकच्चो समणो वा ब्राह्मणे वा तक्की होति वीमंसी। सो
तक्कपरियाहतं वीमसानुचरियं सयंपटिभानं एवमाह "अधिच्चसमुप्पन्नो अत्ता च लोको चा" ति ।" वही १.३.६९
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