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________________ आभार अब इस शोध-प्रबन्ध को पूरा करने में मुझे जिन-जिन महानुभावों से स्नेह पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है, मैं उन सबके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर देना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ । सर्वप्रथम मैं पितृतुल्य निर्देशक विद्वत्-वर पूज्य डॉ० सागरमल जैन एवं पूजनीया माता श्रीमती कमला बाई जैन के पावन आशीर्वाद से इस अनुष्ठान को पूर्ण करने में समर्थ हो सका हूँ । उनके पौरोहित्य के बिना मुझ अकिंचन अग्निहोत्री द्वारा इस कार्य का श्रीगणेश करना तक सम्भव नहीं था । वस्तुतः यह प्रबन्ध उनकी पावन अनुकम्पा का ही प्रतिफल है । एतदर्थ इस महान् सहयोग हेतु उन्हें इन अक्षम शब्दों के द्वारा धन्यवाद देना तो संभव नहीं है, उनके स्नेहपूर्ण बहुमुखी निर्देशन हेतु मैं चिराभारी रहूँगा । इसके साथ ही मुझ पर पूज्य गुरु डॉ० आर० एन० मुकर्जी, रीडर, दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का भी कम ऋण नहीं हैं, जिनके तर्कशास्त्रीय निर्देशन के बिना इस निबन्ध का समापन कदापि संभव नहीं था । अतएव मैं उनके सौहार्द्रपूर्ण निर्देशन हेतु कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ । पुनः, पूज्य पिता श्री घुरपत्तर यादव, माता श्रीमती सहदेई के पावन आशीष एवं पत्नी शारदा देवी के सहयोग को भी भुलाया नहीं जा सकता । तदुपरान्त मैं अपने विभागाध्यक्ष प्रो० रामशंकर मिश्र का भी आभारी हूँ, जिनके कार्यकाल में मुझे हर आवश्यक विभागीय सहायता प्राप्त हुई, जिससे समस्त कार्य सहज होता गया । इस प्रसंग में मैं प्रो० एन० एस० एस० रमन ( दर्शन विभाग का० हि० वि० वि०) का भी ऋणी हूँ, क्योंकि उन्होंने मुझे अपने कार्यकाल में पा० वि० शोध संस्थान से उक्त विषय पर कार्य करने की अनुमति प्रदान की थी । इसके साथ ही मैं डॉ० रेवतीरमण पाण्डेय रीडर, दर्शन विभाग, का० हि० वि० वि०, डॉ० एल० एन० शर्मा, प्रोफेसर, दर्शन विभाग, का०हि०वि०वि०, श्री केदार नाथ मिश्र, रीडर, दर्शन विभाग, का०हि०वि०वि०, श्री कमलाकर मिश्र, डॉ० बद्रीनाथ सिंह, प्रो० ए० के० चटर्जी आदि सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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