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( ४० ) संदर्भ में किया है, फिर भी उसकी सप्तमूल्यात्मकता को किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया। किन्तु हमारी दृष्टि में जैन आचार्यों ने सप्तभंगी को सप्त मल्यात्मक ही माना है। इसलिए यह आवश्यक था कि सप्त मूल्यात्मकता के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या का प्रयत्न किया जाय । यद्यपि मुझे अपने इस प्रयास में कितनी सफलता मिली है, यह निर्णय तो विद्वत्जन ही करेंगे।
भिखारीराम यादव
प्राध्यापक दर्शन एस० एन० सिन्हा कालेज
औरंगाबाद (बिहार)
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