________________
(
३९
)
लाल
वायलेट
पाला
124
काला
KURIA
नीला
यद्यपि यह चित्रण वेन डाइग्राम जैसा नहीं है, क्योंकि यह उसके किसी भी सिद्धान्त के अन्तर्गत नहीं आता है। लेकिन, यह चित्र सप्तभंगी के सातों भंगों के क्षेत्र-निर्धारण में समर्थ है। इससे सप्तभंगी की सप्तमल्यता निश्चित होती है। वस्तुतः यह कहा जा सकता है कि सप्तभंगी सप्तमूल्यात्मक है। इसके सातों भंगों का तार्किक मूल्य है। इनका यह मूल्यांकन समकालीन तर्कशास्त्रों के द्वारा करना संभव है। इस प्रबन्ध का छठाँ और अन्तिम अध्याय उपसंहार है। जिसमें इस प्रबन्ध का सार प्रस्तुत है। उसमें सप्तभंगी की सप्तभंगिता का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। उसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि सप्तभंगी न तो द्वि-मूल्यात्मक है और न तो त्रि-मूल्यात्मक है। प्रत्युत् यह सप्त मूल्यात्मक है। इस प्रसंग में इसे बहु-मूल्यात्मक भी कहना अप्रासंगिक नहीं है। ___इस प्रकार प्रस्तुत प्रबन्ध में सप्तभंगी का आधुनिक तर्कशास्त्रीय संदर्भो में पुनर्मूल्यांकन करने का यथाशक्ति प्रयत्न किया गया है। हमारा यह प्रयास रहा है कि इसका कोई भी पक्ष अछूता न रहे । यद्यपि इसका अध्ययन प्रो० संगम लाल पाण्डेय ने त्रि-मल्यात्मक तर्कशास्त्र के संदर्भ में, डॉ० (श्रीमती) आशा जैन ने मानक तर्कशास्त्र के संदर्भ में, प्रो० बारलिंगे ने संभाव्यता के सन्दर्भ में, डॉ० डी० एस० कोठारी ने भौतिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में, प्रो० जी० बी० बर्च ने भौतिक विज्ञान के संदर्भ में, डॉ० महलनविस (सचिव, भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, कलकत्ता) ने सांख्यिकी के सन्दर्भ में, डॉ० आर० एन० मुकर्जी ने संभाव्य तर्कशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में और डॉ० सागरमल जैन ने आधुनिक तर्कशास्त्रीय प्रतीकात्मकता के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org