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________________ ( ३७ ) जिसे चित्र द्वारा इस प्रबन्ध के पंचम अध्याय में पाश्चात्य प्रतीकवादी और बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी का मूल्यांकन किया गया है । इस अध्याय में यह स्पष्ट किया गया है कि सप्तभंगी न तो द्विमूल्यात्मक है और न त्रिमूल्यात्मक | परन्तु यह सप्त मूल्यात्मक है । इस संदर्भ में जैन विचारकों की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए भौतिक विज्ञान के सिद्धान्त से तुलना की गयी है और उसके आधार पर सप्तभंगी की सप्तमूल्यात्मकता को निर्धारित करने का प्रयत्न किया गया है । भौतिक विज्ञान में यह कल्पना की गयी है कि यदि भिन्न-भिन्न रंग वाले तीन प्रक्षेपक इस प्रकार व्यवस्थित किये जायें कि तीनों के प्रकाश एक दूसरे पर अंशतः पड़ें और प्रत्येक प्रक्षेपक से निकलने वाले प्रकाश को यदि हम एक अवयव मानें तो उनसे सात प्रकार के क्षेत्र का निर्धारण होगा और वे सातों क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न होंगे । स्पष्ट किया गया है । इसी प्रकार सप्तभंगी में पूर्व के तीन भंगों को मूल और शेष चार भंगों को उनका सांयोगिक भंग माना जाय तो वे सभी एक दूसरे से भिन्न और अलग-अलग मूल्य वाले होगें । इस बात की चर्चा प्रो० जी० बी० बर्च ने भौतिक विज्ञान के तीन सिद्धान्त - तरंग - सिद्धान्त, कणिका - सिद्धान्त और क्वान्टम थियरी (Undulatory theory, Corpuscular theory and Quantum Theory) के आधार पर की है । जिसका पूर्णतः विवेचन एवं समीक्षण प्रस्तुत अध्याय केप्रारम्भ में किया गया है । तत्पश्चात् सप्तभंगी के सातों भंगों का प्रतीकात्मक प्रारूप और एक चित्रात्मक प्रारूप भी प्रस्तुत किया गया है । सप्तभंगी को प्रतीकीकृत करने के लिए संभाव्यता - तर्कशास्त्र का सहारा लिया गया है । यद्यपि सप्तभंगी संभाव्य नहीं है और न तो इसे संभाव्यात्मक मूल्य ही दिया जा सकता है, क्योंकि सप्तभंगी संभाव्यात्मक नहीं है । यह वस्तु के सन्दर्भ में निश्चयात्मक कथन करती है । किन्तु, संभाव्यता- तर्कशास्त्र में प्रकथन के अनेक सत्यता मूल्यों की अवधारणा है, जिसमें से किसी भी मूल्य को प्राप्त करना सरल है । इसलिए सप्तभंगी हेतु सात मूल्यों को संभाव्यता के आधार पर प्राप्त करना संभव हैं । इसके लिए हमने संभाव्यता- तर्कशास्त्र से आकार ग्रहण किया है, क्योंकि संभाव्यता- तर्कशास्त्र के एक सिद्धान्त से सप्तभंगी की आकृतिगत समानता है । वह इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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