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२२२ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या प्रभाव और एक फोटोग्रेफिक प्लेट तीनों पर एक साथ प्रयोग किया जाय। __ इस प्रकार भौतिक विज्ञान के तरंग सिद्धान्त को सप्तभङ्गी के भङ्गों में रखने से सप्तभङ्गो के ही सप्त मूल्यात्मकता को सिद्धि होती है; क्योंकि प्रत्येक भङ्ग में जो-जो प्रयोग किये गये हैं उनसे भिन्न-भिन्न निष्कर्षों को प्राप्ति होती है। प्रत्येक प्रयोग का निष्कर्ष एक दूसरे से भिन्न है। इसलिए प्रत्येक प्रयोग भी एक दूसरे से भिन्न और नवोन हैं। यद्यपि इस प्रयोग के आधार पर प्रो० मेरी बी० मिलर और एच० रिचेनबैक ने यह व्याख्या त्रि-मल्यात्मक तर्कशास्त्र के आधार पर हो को है और अन्त में उसे त्रिमल्यात्मक ही सिद्ध किया है ।२ किन्तु, जी० बी० बर्च को यह मत मान्य नहीं है। उन्हें सप्तभङ्गो में सप्त मूल्यात्मकता ही दृष्टिगत होती है । उन्होंने इस सप्त मूल्यात्मकता की सिद्धि हेतु एक दूसरा दृष्टान्त प्रस्तुत किया है-"क्या लिंकन दासों को मुक्त किया था ? इस प्रश्न को लेकर इसका उत्तर प्रो० बर्च ने सप्तभङ्गो के आधार पर देने का प्रयत्न किया है । "कथंचित् उसने दासों को मुक्त किया था, क्योंकि उसने उनकी मुक्ति के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। कथंचित् वे नहीं किये थे, क्योंकि तेरहवें संशोधन के अनुसार वे कानूनन मुक्त हुए थे; कथंचित् यह अनिश्चित है, यदि आप इन दोनों घटनाओं पर एक साथ विचार करें। कथंचित् वह किया था और नहीं किया था, यदि आप दोनों घटनाओं पर क्रमशः विचार करें जैसे एक इतिहास में लिखा जाता है। कथंचित् वह किया था और यह अनिश्चित है, यदि आप घोषणा और उसके परिणाम पर वार्तालाप करें। कथंचित् वह नहीं किया था और यह अवतव्य है यदि आप दासों के प्रारम्भिक स्थिति के आधार पर संशोधन का संदर्भ के साथ विचार करें। कथंचित् वह किया था और नहीं किया था और यह अनिश्चित है यदि आप घोषणा और इसकी सांवैधानिक कार्यवाही और दासों पर पड़नेवाले तात्कालिक प्रभाव पर एक संक्षिप्त टीका करें। संदर्भ
१. उदधत-"Seven-valued Logic in Jain Philosophy" Printed
in, International Philosophical Quarterly” p. 68-93, Vol.
4, 1964. By G. B. Burch. २. बहो।
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