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उपसंहार
२२३ पर निर्भर होने से इनमें से प्रत्येक कथन सत्य है लेकिन इनमें कोई भी सत्य नहीं है हो सकता यदि कही हई शर्त को अलग कर दिया जाय । सामान्य विचार इसे कभी भी उपेक्षित नहीं कर सकता। जबकि निम्न कोटि का तर्कशास्त्र यह कहता है कि या तो वह मुक्त किया था या नहीं किया था।' इस प्रकार एक-एक शर्त को सप्तभङ्गी के प्रत्येक भंग में जोड़ कर प्रो० बर्च ने सप्तभङ्गी को सप्त मुल्यता को निर्धारित किया है। वैसे यह कहना ठीक भी है, क्योंकि जैन सप्तभङ्गो भी अपनी सप्त भङ्गिता किसी शर्त के आधार पर ही सिद्ध करती है। वह भी कथन को पूर्णतः निरपेक्षता का समर्थन नहीं करती है। यही कारण है कि वह प्रत्येक कथन के साथ सापेक्षता का सूचक स्यात् पद को जोड़ देती है। जो भो हो, सप्तभङ्गी सप्त मुल्यात्मक है; इस बात को इनकारा नहीं जा सकता है।
१. उद्धृत-Seven-valued Logic in Jain Philosophy, Printed
in, International Philosophical Quarterly, p. 68-93, vol. 4, 1964, By Prof. G. B. Burch.
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