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________________ २०. उपसंहार करूँगा और फिर दिखलाऊँगा कि लुकासीविज़ का त्रि-मूल्यीय तर्कशास्त्र जेन स्याद्वाद का आधार बन सकता है और उसके द्वारा नयवाद और स्याद्वाद दोनों का प्रमाणोकरण किया जा सकता है।" तत्पश्चात् उन्होंने जैन-विचारणा के अनुरूप ही प्रमाणनय (सुनय) को पूर्ण सत्य और दुर्नय को पूर्ण असत्य मानकर प्रमाणनय (सुनय) और दुर्नय की तुलना त्रि-मूल्यात्मक तर्कशास्त्र के दो सत्यता मूल्यों, सत्य और असत्य से किया और कहा कि तीसरे सत्यता मूल्य हेतु नय को स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि जिस प्रकार लुकासीविज़ का तृतीय सत्यता मूल्य न तो पूर्णरूप से सत्य होता है और न तो पूर्ण रूप से असत्य । अपितु किसी सीमा तक सत्य होता है तो किसी सीमा तक असत्य । इसीलिए लुकासीविज ने उसे अर्ध सत्य और अर्ध असत्य मानकर 1/2 मूल्य से दर्शाया है। ठीक उसी प्रकार से जैनाचार्यों ने भी नय को न तो पूर्णरूप से सत्य कहा है और न तो पूर्णरूप से असत्य । प्रत्युत उसे सत्य और असत्य दोनों मानकर प्रमाणांश या प्रमाणेकदेश से सम्बोधित किया है। वस्तुतः इसकी तुलना लुकासीविज़ के तृतीय सत्यता मूल्य से की जा सकती है। डॉ० पाण्डेय ने लिखा है-'वे (जैन-आचार्य) नय को एक तरफ प्रमाणनय से और दूसरी तरफ दुर्नय से भिन्न मानते हैं। उनके अनुसार प्रमाणनय सत्य है और दुर्नय असत्य । परिणामतः नय का सत्यता मूल्य प्रमाणनय और दुर्नय के सत्यता मूल्य से भिन्न "संदिग्ध" या "अनिश्चित" या तृतीय सत्यता मूल्य अर्थात् सत्य और असत्य दोनों है। संदिग्ध-यह वह सत्यता मूल्य है जो सत्य और असत्य दोनों के बीच अवस्थित है अर्थात् यह संदिग्ध सत्यता मूल्य सत्य की अपेक्षा कम, किन्तु असत्य की अपेक्षा अधिक सत्य है। इसलिए इसकी तुलना लुकासीविज़ के तृतीय सत्यता मूल्य से की जा सकती है।" इस प्रकार डॉ० संगमलाल पाण्डेय ने सुनय, नय और दुर्नय को लुकासीविज़ के सत्य, संदिग्ध और असत्य के तुल्य मूल्य वाला मानकर निम्नलिखित तुलना प्रस्तुत की१. दार्शनिक त्रैमासिक, वर्ष २०, अंक ४, जुलाई १९७५, पृ० १७६ । २. Nayavada and many valued logic. Seminar on Jain Logic and Philosophy, 27th to 30th November, 1973, at the Department of Philosophy, University of Poona (unpub lished). ३. दार्शनिक त्रैमासिक, वर्ष २०, अंक ४, जुलाई १९७५, पृ० १७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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