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समकालीन तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी : एक मूल्यांकन २०३ भी करता है। एक रुचिकर बात यह है कि सप्तभंगी के सातवें भंग में क्रमार्पण और सहार्पण रूप तीसरे और चौथे भंग का संयोग माना गया है। इस संदर्भ में सप्तभंगीतरंगिणी का निम्न कथन द्रष्टव्य है-"अलग-अलग क्रम-योजित और मिश्रित रूप अक्रम-योजित द्रव्य तथा पर्याय का आश्रय करके "स्यात् अस्ति नास्ति च अवक्तव्यश्च घट:" किसी अपेक्षा से सत्त्व असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व का आश्रय घट है इस सप्तभंगी की प्रवृत्ति होती है।' इसका भाव यह है कि अस्ति और नास्ति भंग के क्रमिक और अक्रमिक संयोग से अवक्तव्य भङ्ग की योजना है अर्थात् अस्ति और नास्ति के योजित रूप "अस्ति च नास्ति' में अस्ति-नास्ति के अक्रम रूप अवक्तव्य को जोड़ा गया है। अब यदि अस्ति A है, नास्ति -B और अवक्तव्य -C है तो सातवें भङ्ग का रूप होगा A-B में -C का योग । जो संभाव्यता-तर्कशास्त्र के उपर्युक्त सिद्धान्त के अन्तिम कथन से मेल खाता है।
जिस प्रकार सप्तभङ्गी में तीन मलभङ्गों से चार ही सांयोगिक भङ्ग बनाने की योजना है उसी प्रकार संभाव्यता-तर्कशास्त्र में भी तीन स्वतन्त्र घटनाओं के संयोग से चार सांयोगिक स्वतन्त्र घटनाओं की अभिकल्पना है।२ वस्तुतः ये सभी बातें जैन तर्कशास्त्र को स्वीकृत हैं। इसलिए इस. प्रतीकात्मक प्रारूप को सप्तभङ्गी पर लागू किया जा सकता है।
अब सप्तभङ्गी की मूल्यात्मकता को निम्न रूप से चित्रित करने का प्रयास किया जा सकता है। यदि स्यादस्ति, स्यान्नास्ति और स्यादवक्तव्य अर्थात् A, B और C को एक-एक वृत्त के द्वारा सूचित किया जाय तो उन वृत्तों के संयोग से बनने वाले सप्तभंगी के शेष चार भङ्गों के क्षेत्र इस प्रकार होंगे
१. "एवं व्यस्तो क्रमापितौ समस्तौ सहापितौ च द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्यादस्तिनास्ति चावक्तव्य एवं घट इति सप्तमभंगः ।"
-सप्तभंगीतरंगिणी, पृ० ७२. 2. See-“In other words, that the pairwise independence of
the three events should imply that the two events A, B and C are independents.” William Feller : An Introduction to Probability Theory and Its Applications. Vol. I, p. 126.
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