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१९६ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या प्रतीकों द्वारा प्रदर्शित किया जाय तो ज्यादा अच्छा होगा । डॉ० मुकर्जी की व्याख्या में सबसे बड़ी कमी यही है कि उससे सप्तभंगी की सप्त-मल्यात्मकता न सिद्ध होकर उसकी अष्टमूल्यात्मकता सिद्ध होती है जो कि जैन तर्कशास्त्र को अभिप्रेत नहीं है।
इस प्रकार जैन-सप्तभंगी न तो द्वि-मूल्यात्मक है और न तो त्रि-मल्यात्मक; अपितु, इसे सप्तमूल्यात्मक कहा जा सकता है। इसके इस सप्तमूल्यता का निर्धारण सम्भाव्यता-तर्कशास्त्र के आधार पर किया जा सकता है। यद्यपि हमें स्पष्टतया यह ध्यान रखना होगा कि सप्तभंगी सम्भावना पर आश्रित नहीं है। यह अपने भंगों में निश्चयात्मक तथ्यों का प्रतिपादन करती है । इसलिए इसे संभाव्यात्मक नहीं कहा जा सकता। किन्तु संभाव्यता में विभिन्न संभावित सत्यता मूल्यों की कल्पना है। संभाव्यता के अनुसार शून्य (0) और एक (1) अर्थात् पूर्णसत्ता के बीच अनन्त सम्भावनायें हैं। उन्हें विभिन्न संभावित सत्यता मूल्यों के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। जैसे 1/2, 2/3, 1/4, 1/5, 1/6.... में इत्यादि । इसी प्रकार जैन तर्कशास्त्र भी सत्ता के सन्दर्भ में अनन्त धर्मों अर्थात् अनन्त संभावनाओं को स्वीकार करता है। वस्तुतः सत्ता के सन्दर्भ में विभिन्न मूल्यात्मक अनन्त कथन होंगे। इसी दृष्टि से जैन तर्कशास्त्र संभाव्यता-तर्कशास्त्र से तुलनीय हैं। किन्तु, जैन-सप्तभंगी सप्त मूल्यात्मक है। उसकी उस सप्तमूल्यात्मकता को संभाव्यता तर्कशास्त्र से तो प्राप्त नहीं किया जा सकता। परन्तु, यदि सम्भाव्यता-तर्कशास्त्र से सप्तभंगी हेतु माडल प्राप्त किया जाय तो उसके ताकिक स्वरूप का प्रतिपादन हो सकता है।
इस बात को जैन आचार्य स्वीकार करते हैं कि सप्तभंगी के मूलभूत भंग स्यादस्ति, स्यान्नास्ति और स्यादवक्तव्य ये तीन ही हैं। इन्हीं तीन मूलभूत भंगों के संयोग से शेष चार भंगों का निर्माण हुआ है। इसी से मिलता-जुलता एक सिद्धान्त संभाव्यता-तर्कशास्त्र में भी है। सम्भाव्यतातर्कशास्त्र में A, B और C को तीन स्वतन्त्र घटनाएँ मानकर इनके संयोग से चार अन्य घटनाओं का विवेचन किया गया है। तीन स्वतन्त्र घटनाओं A, B और C के जोड़े अर्थात् युग्म के रूप में निम्न घटनाएँ प्रतिफलित होती हैं :1. See-An Introduction to Probability Theory and its Applications, Vol. I, p. 126.
-William Feller.
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