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________________ समकालीन तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी : एक मूल्यांकन १७७ तो पहले हमें सातों वाक्यों को प्रतीकों में रखना चाहिये । मान लीजिए पहला वाक्य "क" है तो दूसरा वाक्य "~ क" हुआ। तीसरा वाक्य "कV~क" हुआ । चौथा वाक्य "क~क" हुआ जबकि ^ युगपत् भाव का प्रतीक है। इसी प्रकार पांचवां वाक्य क v (क A ~ क) छठाँ वाक्य ~ कV (क A ~ क) सातवाँ वाक्य (क v ~ क) V (क A ~ क) इन सभी वाक्यों में से किसी को भी असत्य नहीं किया जा सकता। इनके प्रमाणीकरण में युगपत् भाव को भी सारणी निहित है जो यों हैं : सारणी-२ ख/क क |~ख । क I ख स अन् अ - - - - अन स स अन् अ । स अन् अ । अन् अन् अ अ अ अ जब कि (1) समुच्चय या युगपत्भाव का प्रतीक है और शेष प्रतीक प्रथम सारणी के ही अनुसार हैं। स्पष्ट है कि युगपत्भाव का नियम बताता है कि उसकी सत्यता का मूल्य उसके अवयवों की न्यूनतम सत्यता है । अब हम स्याद्वाद का प्रमाणीकरण उपर्युक्त दोनों सारणियों के आधार पर कर सकते हैं और देख सकते हैं कि सप्तभंगी का कोई भी भंग असत्य नहीं है । वह सत्य है या अनभिलाप्य है।' ___इनमें पूर्व में इस बात पर विचार किया गया है कि सप्तभंगी को त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के अन्तर्गत नहीं रखा जा सकता है; क्योंकि त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र से सप्तभंगी की किसी भी प्रकार संगति नहीं बैठती है। इसमें सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि सप्तभंगी के किस भंग को असत्य और किस भंग को अनभिलाप्य कहा जाय ? जब कि सप्तभंगी के सभी भंगों का सत्यता मूल्य सत्य है । उनमें से किसी भी भंग को असत्य नहीं कहा जा १. दार्शनिक त्रैमासिक, वर्ष २०, अङ्क ४, जुलाई १९७५, पृ० १७७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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