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________________ १७८ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या सकता है । यद्यपि नास्ति भंग निषेधात्मक है तथापि वह असत्य (0) मूल्यवाला नहीं है। जबकि उपर्युक्त सारणियों में सभी विकल्प सत्य, असत्य और अनभिलाप्यता तीनों को लेकर ही बनते हैं। चूँकि सप्तभंगी में सत्य, असत्य और अनभिलाप्यता तीनों का एक साथ पाया जाना सम्भव नहीं है । इसलिए सप्तभंगी की तुलना त्रि-मूल्यात्मक तर्कशास्त्र से करना युक्तिसंगत नहीं है। दूसरी बात यह है कि सप्तभंगी के सांयोगिक कथनों में संयोजन ही स्पष्ट परिलक्षित है। इसलिए उसे वैकल्पिक के द्वारा व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है। पुनः, सप्तभङ्गी के लिए एक दसरी सत्यता सारणी प्रस्तुत करते हुए डॉ० पाण्डेय ने कहा है कि सप्तभङ्गी के सातों कथनों की यह वह सत्यता सारणी है जिसमें प्रत्येक कथन का सत्यता मूल्य T या I है। इनमें तीन क्रियात्मक संयन्त्रों निषेधक (-), वैकल्पिक (V) और संयोजक (1) तथा उनकी वास्तविक ग्राह्यता को प्रदर्शित किया गया है। कल्पना कीजिए P एक कथन है, जिसका सत्यता मूल्य I है। अब P का निषेध (~P) भी I है। P और ~P का संयोजन भी I है और पुनः P और ~P का वैकल्पिक Pv~P भी I है। इस प्रकार सप्तभङ्गी के प्रथम चार कथन P,~P, PY~P और PA~P है और प्रत्येक का सत्यता मल्य I है। पाँचवाँ कथन प्रथम और चतुर्थ का संयोजन है, छठवाँ कथन चतुर्थ और द्वितीय का संयोजन और अंतिम सातवाँ कथन चतुर्थ और तीसरे का संयोजन है। इस प्रकार क्रमशः संयोजन के नियम के अनुसार इन तीन सांयोगिक कथनों का सत्यता-मूल्य I है, इसलिए सातों नयों की सारणी इस प्रकार है (१) P जहाँ PI है, (२) ~P जो कि I है, (३) PV~P जो कि I है, (४) PA~P जो कि I है, (५) PA (PN-P) जो कि I है। 1. "Nayavada and Many Valued Logic”. 'Seminar on Jain Logic and Philosophy 27th to 30th November 1975, Deptt. of Philosophy, Poona University Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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