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१७६ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या है या वैकल्पिक (डिस्जन्क्शन) है अथवा इन सभी संयन्त्रों का संयोग है या इनमें से कोई नहीं है। इस बात का कोई ठोस निर्णय अभी तक तर्कविदों में नहीं हो पाया है। यही कारण है कि किसी ने सप्तभंगी को विकल्पात्मक या वैकल्पिक कथन माना है, तो किसी ने संयोजनात्मक कथन कहा है और किसी-किसी ने हेतुफलाश्रित तर्कवाक्य माना है। प्रो० संगम लाल पाण्डेय ने संयोजन (कन्जन्क्शन) और वैकल्पिक (डिस्जक्शन)" दोनों ही संयन्त्रों का प्रयोग सप्तभंगी में एक साथ किया है। यद्यपि सप्तभंगी त्रि-मूल्यात्मक नहीं है। तथापि प्रो० पाण्डेय ने लुकासीविज़ के त्रि-मल्यात्मक तर्कशास्त्र के आधार पर ही सप्तभंगी की व्याख्या प्रस्तुत की है। जो इस प्रकार है :
"यदि हम विकल्प की सत्यता-सारणी को लुकासीविज़ के तर्कशास्त्र से लें तो वह निम्न प्रकार की होगी
सारिणी-१
ख/क
क |
~क
| ।
क / ख स अन् अ
स । अ अन् । अन् अ | स
अ । स स स __ अन् | स अन् अन्
अ | स अन् अ
जबकि (१) क और ख तर्कवाक्य हैं।
(२) ~ निषेध का प्रतीक है। (३) v विकल्प का प्रतीक है। (४) स = सत्यता (५) अन् = अनभिलाप्यता
(६) अ- असत्यता इस सारणी के अनुसार "क" और "ख" के नौ विकल्प हैं। इन नौ विकल्पों में से केवल वही विकल्प असत्य है जिनमें "क" और "ख" दोनों असत्य हैं। शेष सभी विकल्प या तो सत्य हैं या अनभिलाप्य हैं और विकल्प का नियम यह मानता है कि उसका सत्यता-मूल्य उसके अवयवों की अधिकतम सत्यता है । इस सारणी के अनुसार यदि हम स्याद्वाद की परीक्षा करें
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