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________________ जैन न्याय में सप्तभंगी १६९ अन्तिम भंग है। इसमें ततीय और चतुर्थ भंगों का संयोग है। इस भंग के द्वारा वस्तु के अस्तित्व, नास्तित्व और उभय रूप अवक्तव्यत्व पक्षों का कथन एक साथ किन्तु क्रमशः किया जाता है। यह भंग यह सूचित करता है कि जो वस्तु स्व द्रव्य की दष्टि से अस्तित्व धर्मयक्त है और पर द्रव्य की दृष्टि से नास्तित्व धर्मयुक्त है। वही स्व-पर दोनों द्रव्यों की दृष्टि से अवक्तव्यत्व धर्मयुक्त है; यही बात इस प्रकार से भी कही जा सकती है कि जो वस्तु किसी द्रव्यार्थ विशेष की अपेक्षा से 'अस्तित्व" धर्मयक्त है और किसी पर्याय विशेष की अपेक्षा से "नास्तित्व" धर्मयुक्त है वही द्रव्यपर्याय युगपत् की विवक्षा से अवक्तव्य भी है। इस प्रकार यह भंग अस्तित्व, नास्तित्व और अवक्तव्यत्व का क्रमरूपेण वाचकत्व का सूचक हैं। सप्तभंगीतरंगिणी में कहा गया है कि अलग-अलग क्रम से योजित तथा मिलित रूप अक्रम-योजित द्रव्य-पर्याय का आश्रय करके "स्यात् अस्तिनास्ति च अवक्तव्यश्च घटः" भंग की प्रवृत्ति होती है । इसका लक्षण है घट आदि रूप एक पदार्थ विशेष का सत्त्व, असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषण वाले ज्ञान को उत्पन्न करना।' अर्थात् जिस ज्ञान में घट आदि कोई एक पदार्थ तो विशेष्य हो और सत्त्व, असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषण हो ऐसा जो ज्ञान है उस ज्ञान को उत्पन्न करना इस भंग का लक्षण है। इस प्रकार क्रमशः सत्त्व, असत्त्व और युगपततः सत्त्व-असत्त्व रूप अवक्तव्यत्व को अभिव्यक्त करना इस भंग का लक्ष्य है। इस प्रकार सप्तभंगी के सातों भंग एक दूसरे से भिन्न तथा नवीनतथ्यों का प्रकाशन करने वाले हैं ऐसा उपर्युक्त विवेचन से प्रतिफलित होता है। इस आधार पर यह निश्चित किया जा सकता है कि सप्तभंगी के सातों भंगों का अपना अलग अलग मूल्य है; और उस मूल्यता के कारण इसे सप्तमूल्यात्मक कहा जा सकता है। जिसका विस्तृत विवेचन हम अग्रिम अध्याय में करेंगे। १. एवं व्यस्तौ क्रमापितौ समस्तौ सहार्पितौ च द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्य एव घट इति सप्तमभंगः । घटादिरूपैकवस्तुविशेष्यकसत्त्वासत्त्वविशिष्टावक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् ।” -ससभङ्गीतरङ्गिणी, पृ० ७२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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