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________________ जैन न्याय में सप्तभंगी १४९ पर ही प्रयुक्त होना तर्कसंगत प्रतीत होता है। साथ ही, समन्तभद्रादि आचार्यों को यही मत मान्य है और यह बात हम आगे और भी स्पष्ट करेंगे। भंगों को आगमिक व्याख्या प्रथम भंग _ "स्यादस्त्येव" यह सप्तभङ्गी का प्रथम भङ्ग है। इससे वस्तु में अस्तिरूपता का निर्धारण होता है कि अमुक वस्तु में अमुक धर्म का अस्तित्व अमुख अपेक्षा से है । स्यादस्त्येव-"स्यात्"-"अस्ति"-"एव" का शाब्दिक अर्थ ही है किसी अपेक्षा विशेष से वस्तु में भावात्मक धर्मों की सत्ता है ही । उदाहरणार्थ-"स्यादस्त्येव घटः" का अर्थ है-स्वचतुष्टय की अपेक्षा से घट में भावात्मक धर्मों की सत्ता निश्चित रूप से है। यद्यपि यह भङ्ग वस्तु के भावात्मक धर्मों का हो विधान करता है, तथापि यह वस्तु के अभावात्मक धर्मों का निषेध नहीं करता है; क्योंकि इस भङ्ग में प्रयुक्त "स्यात्" नामक अपेक्षा सूचक पद वस्तु के भावात्मक धर्मों के विधान के साथ ही अभावात्मक धर्मों की रक्षा भी करता है; और “एव" शब्द जो कि कभी-कभी कथन में उपेक्षित या ओझल हो जाता है, यद्यपि उसकी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए, कथन के उद्देश्य से अपेक्षित धर्म को निश्चयता एवं कथन को पूर्णता प्रदान करता है। इसी प्रकार "अस्ति" शब्द, जो कि एव के पहले और स्यात् के बाद प्रयुक्त होकर कथन को पूर्ण बनाता है, इस भङ्ग का क्रियापद है। परन्तु अब समस्या यह उत्पन्न होती है कि इस कथन के विधेय स्वरूप अस्तिरूपता का बोध किस पद से होता है ? इस समस्या के समाधान हेतु दो बातें हमारे समक्ष आती हैंप्रथम तो यह कि "अस्ति" पद ही क्रियापद के साथ-साथ विधेय पद का भी बोध कराता है। इस आधार पर यद्यपि इस भङ्ग का स्वरूप "स्यादस्त्येवास्ति' होना चाहिए। पर मेरे विचार से जैन आचार्यों ने एक ही वाक्य में दो अस्ति पद का प्रयोग करना उचित नहीं समझा और यह मान लिया कि एक ही अस्ति पद दोनों बातों का बोध करायेगा। दूसरे, यह कि जैन आचार्यों ने स्यादस्त्येव को केवल प्रतीक रूप में ही प्रयक्त किया। जिससे उसमें जिस विधेय का कथन करना हो, उसको बैठा दिया जाय और वहो उसका विधेय पद हो जाय । उदाहरणार्थ स्यादस्त्येव घटः, सापेक्षतः घट में अस्ति सूचक धर्म है ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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