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________________ जैन न्याय में सप्तभंगी १४५ वान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है । (१९) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, दो देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और दो देश ( तदुभय पर्यायों ) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। इसलिए पञ्चप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान है, नहीं है और अवक्तव्य है । (२०) पञ्चप्रदेशी स्कन्ध अनेक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, एक देश ( असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश तदुभय पर्यायों की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है। (२१) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान है, एक देश (असद्भाव पर्यायों) को अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है। (२२) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान है, दो देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है। इसी प्रकार षट्प्रदेशी स्कन्ध के सन्दर्भ में महावीर ने २३ भंगों को प्रस्तुत किया है। उन्होंने पंचप्रदेशी स्कन्ध के २२ भंगों को ज्यों का त्यों लेकर उसमें एक २३ वाँ भंग अलग से जोड़कर षट् प्रदेशी स्कन्ध के २३ भंगों की संख्या पूरी की है। उनका वह २३वाँ भंग निम्नलिखित है : "षटप्रदेशी स्कन्ध दो देश (सदभाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, दो देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और दो देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। इसलिए षट्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है।' - इस प्रकार हमने उपर्युक्त विवेचन में देखा कि एक, दो, तीन, चार, पांच और छः प्रदेशो स्कन्धों के आधार पर तीन, छः, तेरह, उन्नीस, बाइस और तेइस भंगों की स्थापना होती है । इसी प्रकार यदि और भी स्कन्धों १. भगवती सूत्र, १२:१० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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