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________________ १४४ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या है | अतः पंचप्रदेशी स्वन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है । (१०) पंचप्रदेशी स्वन्ध अनेक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है । (११) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो या तीन देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और दो या तीन ( तदुभय पर्यायों ) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है । (१२) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवतव्य है । अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है । (१३) पंचप्रदेशी स्वन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है । (१४) पंचप्रदेशी स्कन्ध अनेक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है । (१५) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो या तीन देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और तीन या दो देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है | अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्वान् नहीं है और अवक्तव्य है । (१६) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है । (१७) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है तथा अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है । (१८) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, अनेक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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