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जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या
है | अतः पंचप्रदेशी स्वन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है ।
(१०) पंचप्रदेशी स्वन्ध अनेक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है ।
(११) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो या तीन देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और दो या तीन ( तदुभय पर्यायों ) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है ।
(१२) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवतव्य है । अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है । (१३) पंचप्रदेशी स्वन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१४) पंचप्रदेशी स्कन्ध अनेक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१५) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो या तीन देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और तीन या दो देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है | अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्वान् नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१६) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है ।
(१७) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है तथा अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१८) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश ( सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, अनेक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्व
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